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अयां॑समग्ने सुक्षि॒तिं जना॒यायां॑समु म॒घव॑द्भ्यः सुवृ॒क्तिम्। विश्वं॒ तद्भ॒द्रं यदव॑न्ति दे॒वा बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥

English Transliteration

ayāṁsam agne sukṣitiṁ janāyāyāṁsam u maghavadbhyaḥ suvṛktim | viśvaṁ tad bhadraṁ yad avanti devā bṛhad vadema vidathe suvīrāḥ ||

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Pad Path

अयां॑सम्। अ॒ग्ने॒। सु॒ऽक्षि॒तिम्। जना॑य। अयां॑सम्। ऊँ॒ इति॑। म॒घव॑त्ऽभ्यः। सु॒ऽवृ॒क्तिम्। विश्व॑म्। तत्। भ॒द्रम्। यत्। अव॑न्ति। दे॒वाः। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒ऽवीराः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:35» Mantra:15 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:24» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वन् जिस (अयांसम्) जिससे भुजायें प्राप्त हुईं (सुक्षितिम्) जो सुन्दर पृथिवीयुक्त (सुवृक्तिम्) जिसकी दुष्टकर्मों का त्याग करना वृत्ति (उ) और (जनाय) मनुष्यों के लिये वा (अयांसम्) जिससे भुजायें प्राप्त हुईं (मघवद्भ्यः) परम धनवान् मनुष्यों के लिये (यत्) जिस (भद्रम्) कल्याणरूपी (विश्वम्) जगत् की (सुवीराः) सुन्दर वीर अर्थात् प्राप्त हुआ शरीर बल जिनको वे (देवाः) विद्वान् जन (अवन्ति) रक्षा करते हैं (तत्) उसको (बृहत्) बहुत (विदथे) यज्ञ में हम लोग (वदेम) कहें अर्थात् उसको उपदेश दें ॥१५॥
Connotation: - जो जन धर्म के अनुकूल आचरण करनेवालों की अच्छे प्रकार रक्षा और दुष्टों को दण्ड दे जगत् के कल्याण के लिये बड़े-बड़े उत्तम कर्मों को करें, वे सबको सर्वदा सत्कार करने योग्य हैं ॥१५॥ इस सूक्त में अग्नि मेघ अपत्य विवाह और विद्वान् के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ संगति समझनी चाहिये ॥ यह ३५ पैंतीसवाँ सूक्त और २४ चौबीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने यमयांसं सुक्षितिं सुवृक्तिमु जनायायांसं मघवद्भ्यो यद्भद्रं विश्वं सुवीरा देवा अवन्ति तद्बृहद्विदथे वयं वदेम ॥१५॥

Word-Meaning: - (अयांसम्) अयौ प्राप्तवन्तौ दोर्दण्डौ येन तम् (अग्ने) विद्वन् (सुक्षितिम्) शोभनां भूमिम् (जनाय) (अयांसम्) (उ) वितर्के (मघवद्भ्यः) परमपूजितधनेभ्यः (सुवृक्तिम्) सुष्ठुवृक्तिर्दुष्टकर्मवर्जनं यस्य तम् (विश्वम्) समस्तं जगत् (तत्) (भद्रम्) भन्दनीयं कल्याणरूपम् (यत्) (अवन्ति) रक्षन्ति (देवाः) विद्वांसः (बृहत्) महत् (वदेम) उपदिशेम (विदथे) यज्ञे (सुवीराः) सुष्ठुप्राप्तशरीरबलाः ॥१५॥
Connotation: - ये जना धर्म्याचरणान्सुरक्ष्य दुष्टान् परिदण्ड्य जगत्कल्याणाय महान्त्युत्तमानि कर्माणि कुर्युस्ते सदा सर्वैस्सत्कर्त्तव्यास्स्युरिति ॥१५॥ अत्राग्निमेघापत्यविवाहविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥ इति पञ्चत्रिंशत्तमं सूक्तं चतुर्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे लोक धर्मानुकूल आचरण करणाऱ्यांचे चांगल्या प्रकारे रक्षण करून दुष्टांना दंड देतात, जगाच्या कल्याणासाठी मोठमोठी कार्ये करतात ते सदैव सर्वांनी सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ १५ ॥