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यद्यु॒ञ्जते॑ म॒रुतो॑ रु॒क्मव॑क्ष॒सोऽश्वा॒न्रथे॑षु॒ भग॒ आ सु॒दान॑वः। धे॒नुर्न शिश्वे॒ स्वस॑रेषु पिन्वते॒ जना॑य रा॒तह॑विषे म॒हीमिष॑म्॥

English Transliteration

yad yuñjate maruto rukmavakṣaso śvān ratheṣu bhaga ā sudānavaḥ | dhenur na śiśve svasareṣu pinvate janāya rātahaviṣe mahīm iṣam ||

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Pad Path

यत्। यु॒ञ्जते॑। म॒रुतः॑। रु॒क्मऽव॑क्षसः। अश्वा॑न्। रथे॑षु। भगे॑। आ। सु॒ऽदान॑वः। धे॒नुः। न। शिश्वे॑। स्वस॑रेषु। पि॒न्व॒ते॒। जना॑य। रा॒तऽह॑विषे। म॒हीम्। इष॑म्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:34» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:20» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (रुक्मवक्षसः) सुवर्ण के समान वक्षःस्थलवाले (सुदानवः) उत्तम पदार्थों के दानकर्त्ता (मरुतः) विद्वान् पुरुषो (भगे) ऐश्वर्य के होते (रथेषु) यानों में (यत्) जिन (अश्वान्) घोड़े वा अग्न्यादि पदार्थों को (युञ्जते) युक्त करते वा (स्वसरेषु) दिनों के बीच (शिश्वे) बालक वा जो (रातहविषे) देने योग्य दे चुका उस (जनाय) सत्पुरुष के लिये (धेनुः) दुग्ध देनेवाली गौ बछड़े को (न) जैसे-वैसे (महीम्) अत्यन्त (इषम्) इच्छा को (आ,पिन्वते) अच्छे प्रकार सींचते हैं, उन सबको सब लोग अच्छे प्रकार प्रयुक्त करें ॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे अच्छी शिक्षा को प्राप्त विद्वान् जन घोड़े आदि पशुओं को और अग्नि आदि पदार्थों का प्रयोग कार्य सिद्धि के लिये करते हैं, वैसे अनुष्ठान करो, ऐसे करने से जैसे गौ अपने बछड़े को तृप्त करती हैं, वैसे ये प्रयोग करनेवालों को धनी करते हैं ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे रुक्मवक्षसः सुदानवो मरुतो भगे रथेषु यदश्वान् युञ्जते स्वसरेषु शिश्वे रातहविषे जनाय धेनुर्वत्सं नेव महीमिषमा पिन्वते तान् सर्वे संयुञ्जन्ताम् ॥८॥

Word-Meaning: - (यत्) यान् (युञ्जते) (मरुतः) विद्वांसो मनुष्याः (रुक्मवक्षसः) रुक्ममिव वक्षो येषान्ते (अश्वान्) तुरङ्गानग्न्यादीन् वा (भगे) ऐश्वर्ये सति (आ) (सुदानवः) श्रेष्ठानां पदार्थानां दातारः (धेनुः) दुग्धदात्री गौः (न) इव (शिश्वे) वत्साय (स्वसरेषु) दिनेषु (पिन्वते) सिञ्चति। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम् (जनाय) सत्पुरुषाय (रातहविषे) दत्तदातव्याय (महीम्) महतीं पूज्यां वाचम् (इषम्) इष्टामिच्छां वा ॥८॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यथा सुशिक्षिता विद्वांसोऽश्वादीन् पशूनग्न्यादींश्च कार्य्यसिद्धये प्रयुञ्जते तथाऽनुतिष्ठत एवं कृते सति यथा धेनुः स्ववत्सं तर्पयति तथैते प्रयोक्तॄन् धनयन्ति ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसे सुशिक्षित विद्वान लोक घोडे इत्यादी पशू व अग्नी इत्यादी पदार्थांचा प्रयोग कार्यसिद्धीसाठी करतात तसे अनुष्ठान करा. असे केल्यामुळे जशी गाय आपल्या वासराला तृप्त करते तसे हे प्रयोग करणारे धनवान बनतात. ॥ ८ ॥