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तं नो॑ दात मरुतो वा॒जिनं॒ रथ॑ आपा॒नं ब्रह्म॑ चि॒तय॑द्दि॒वेदि॑वे। इषं॑ स्तो॒तृभ्यो॑ वृ॒जने॑षु का॒रवे॑ स॒निं मे॒धामरि॑ष्टं दु॒ष्टरं॒ सहः॑॥

English Transliteration

taṁ no dāta maruto vājinaṁ ratha āpānam brahma citayad dive-dive | iṣaṁ stotṛbhyo vṛjaneṣu kārave sanim medhām ariṣṭaṁ duṣṭaraṁ sahaḥ ||

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Pad Path

तम्। नः॒। दा॒त॒। म॒रु॒तः॒। वा॒जिन॑म्। रथे॑। आ॒पा॒नम्। ब्रह्म॑। चि॒तय॑त्। दि॒वेऽदि॑वे। इष॑म्। स्तो॒तृऽभ्यः॑। वृ॒जने॑षु। का॒रवे॑। स॒निम्। मे॒धाम्। अरि॑ष्टम्। दु॒स्तर॑म्। सहः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:34» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:20» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (मरुतः) प्राणवायु के समान प्रिय तुम (नः) हम लोगों के लिये (तम्) उस समस्त विद्या की स्तुति करनेवाले को (दात) देओ (रथे) रथ के निमित्त (वाजिनम्) सुशिक्षित घोड़े को देओ (दिवेदिवे) प्रतिदिन (चितवत्) चिताते हुए (आपानम्) व्यापक (ब्रह्म) धन वा अन्न को (वृजनेषु) बलों में (स्तोतृभ्यः) सकल विद्याओं के प्रयोजनवेत्ताओं के लिये (इयम्) इस प्रयोजन को (कारवे) करनेवाले के लिये (सनिम्) अलग-अलग बड़ी हुई (मेधाम्) उत्तम बुद्धि को और (अरिष्टम्) अविनष्ट (दुष्टरम्) दुःख से तैरने को योग्य (सहः) बल को देओ ॥७॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि सदैव सबके लिये सकल विद्या बतानेवाले से धर्म से संचित किया हुआ धन विद्वानों के देने के लिये अन्न उत्तम प्रज्ञा और पूर्ण बल को माँगें, विद्वान् जन निश्चय से याचकों के लिये उन उक्त पदार्थों को निरन्तर देवें ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मरुतो यूयं नस्तं दात रथे वाजिनं दात दिवेदिवे चितयदापानं ब्रह्म वृजनेषु स्तोतृभ्य इषं कारवे सनिं मेधामरिष्टं दुष्टरं सहश्च दात ॥७॥

Word-Meaning: - (तम्) सकलविद्यास्तावकम् (नः) अस्मभ्यम् (दात) दत्त। अत्र वाच्छन्दसीति शपो लुक् (मरुतः) प्राणवायुवत्प्रियाः (वाजिनम्) विज्ञानवन्तमश्वम् (रथे) याने युक्तम् (आपानम्) व्यापकम्। आपानमिति व्याप्तिकर्मा० निघं० २। १८ (ब्रह्म) धनमन्नं वा (चितयत्) यच्चितं ज्ञातारं करोति तत् (दिवेदिवे) प्रतिदिनम् (इषम्) इष्टम् (स्तोतृभ्यः) सकलविद्याप्रयोजनविद्भ्यः (वृजनेषु) बलेषु (कारवे) कारुकाय (सनिम्) विभक्ताम् (मेधाम्) प्रज्ञाम् (अरिष्टम्) अहिंसितम् (दुष्टरम्) दुःखेन तरितुमर्हम् (सहः) बलम् ॥७॥
Connotation: - मनुष्यैः सदैव सर्वेभ्यस्सकलविद्याविदध्यापकेन धर्म्मार्जितं धनं विद्वद्भ्यो दानायान्नमुत्तमां प्रज्ञां पूर्णं बलं च याचनीयं विद्वांसः खलु याचकेभ्य एतानि सततं प्रदद्युः ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी सदैव सर्वांना विद्या देणाऱ्या अध्यापकांकडून धर्माने मिळविलेले धन, विद्वानांना देण्यासाठी अन्न, उत्तम प्रज्ञा व बलाची याचना करावी. विद्वानांनी याचकांसाठी वरील पदार्थ निरंतर द्यावेत. ॥ ७ ॥