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इन्ध॑न्वभिर्धे॒नुभी॑ र॒प्शदू॑धभिरध्व॒स्मभिः॑ प॒थिभि॑र्भ्राजदृष्टयः। आ हं॒सासो॒ न स्वस॑राणि गन्तन॒ मधो॒र्मदा॑य मरुतः समन्यवः॥

English Transliteration

indhanvabhir dhenubhī rapśadūdhabhir adhvasmabhiḥ pathibhir bhrājadṛṣṭayaḥ | ā haṁsāso na svasarāṇi gantana madhor madāya marutaḥ samanyavaḥ ||

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Pad Path

इन्ध॑न्वऽभिः। धे॒नुऽभिः॑। र॒प्शदू॑धऽभिः। अ॒ध्व॒स्मऽभिः॑। प॒थिऽभिः॑। भ्रा॒ज॒त्ऽऋ॒ष्ट॒यः॒। आ। हं॒सासः॑। न। स्वस॑राणि। ग॒न्त॒न॒। मधोः॑। मदा॑य। म॒रु॒तः॒। स॒ऽम॒न्य॒वः॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:34» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:19» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (भ्राजदृष्टयः) प्रकाश को प्राप्त हुए (समन्यवः) क्रोधों के साथ वर्त्तमान (मरुतः) मरणधर्मा तुमलोग (इन्धन्वभिः) प्रदीप्त करनेवाली (धेनुभिः) वाणियों से वा (रप्शदूधभिः) प्रकट शब्दरूपी धनों से (अध्वभिः) जो कि ध्वस्त नष्ट न हुए उन (पथिभिः) मार्गों से (हंसासः) हंसों के (न) समान (मधोः) मधुर सम्बन्धी (मदाय) हर्ष के लिये (स्वसराणि) दिनों को (आ,गन्तन) आओ प्राप्त होओ ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे आकाशमार्ग से हंस अभीष्ट स्थानों को सुख से जाते हैं, वैसे सुशिक्षित वाणी से विद्यामार्गों को और धर्मपथों से सुखों को नित्य तुम लोग प्राप्त होओ ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह।

Anvay:

हे भ्राजदृष्टयः समन्यवो मरुतो यूयमिन्धन्वभिर्धेनुभी रप्शदूधभिरध्वस्माभिः पथिभिः हंसासो न मधोर्मदाय स्वराण्या गन्तन ॥५॥

Word-Meaning: - (इन्धन्वभिः) प्रदीपिकाभिः। अत्र वनिपि छान्दसो वर्णलोपो वेत्यलोपः (धेनुभिः) वाग्भिः (रप्शदूधभिः) व्यक्तशब्दधनैः (अध्वस्माभिः) अध्वस्तैः (पथिभिः) मार्गैः (भ्राजदृष्टयः) प्राप्तप्रकाशाः (आ) (हंसासः) (न) इव (स्वसराणि) दिनानि। स्वसराणीति दिनना०। निघं० १। २। (गन्तन) प्राप्नुत (मधोः) मधुरस्य (मदाय) हर्षाय (मरुतः) (समन्यवः) सक्रोधाः ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथाऽकाशमार्गेण हंसा अभीष्टानि स्थानानि सुखेन गच्छन्ति तथा सुशिक्षितया वाचा विद्यामार्गान् धर्मपथैः सुखानि च नित्यं यूयं प्राप्नुत ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे आकाशमार्गाने हंस अभीष्ट स्थानी सहजतेने पोचतात तसे तुम्ही सुशिक्षित वाणीने विद्यामार्गात व धर्मपंथाने नित्य सुख प्राप्त करा. ॥ ५ ॥