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पृ॒क्षे ता विश्वा॒ भुव॑ना ववक्षिरे मि॒त्राय॑ वा॒ सद॒मा जी॒रदा॑नवः। पृष॑दश्वासो अनव॒भ्ररा॑धस ऋजि॒प्यासो॒ न व॒युने॑षु धू॒र्षदः॑॥

English Transliteration

pṛkṣe tā viśvā bhuvanā vavakṣire mitrāya vā sadam ā jīradānavaḥ | pṛṣadaśvāso anavabhrarādhasa ṛjipyāso na vayuneṣu dhūrṣadaḥ ||

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Pad Path

पृ॒क्षे। ता। विश्वा॑। भुव॑ना। व॒व॒क्षि॒रे॒। मि॒त्राय॑। वा॒। सद॑म्। आ। जी॒रऽदा॑नवः। पृष॑त्ऽअश्वासः। अ॒न॒व॒भ्रऽरा॑धसः। ऋ॒जि॒प्यासः॑। न। व॒युने॑षु। धूःऽसदः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:34» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:19» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - (जीरदानवः) साधारण जीव वा (पृषदश्वासः) स्थूल अश्व जिन्होंने सींचे वा (अनवभ्रराधसः) जिनका धन नीचे नहीं गिरा वा (धूर्षदः) जो धुर पर स्थिर होनेवाले (जिप्यासः) वा जो कोमलपन को बढ़ाते हैं (न) उनके समान (मित्राय) मित्र के लिये (वा) अथवा जिस कारण इसके लिये (पृक्षे) जलादिकों से सींचे हुए पृथ्वी मण्डल पर जो (विश्वा) समस्त (भुवना) लोकलोकान्तर (सदम्) वा स्थान (आ,ववक्षिरे) अच्छे प्रकार रोष को प्राप्त हों (ता) वे (वयुनेषु) उत्तम ज्ञानों में बढ़ते हैं ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो दुष्टों के लिये क्रोध करते वा श्रेष्ठों को आनन्द देते हैं, वे बुद्धिमान् होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

जीरदानवः पृषदश्वासोऽनवभ्रराधसो धूर्षद जिप्यासो न मित्राय वा ह्यस्मै पृक्षे यानि विश्वा भुवना सदमा ववक्षिरे ता वयुनेषु वर्द्धन्ते ॥४॥

Word-Meaning: - (पृक्षे) जलादिभिः सिक्ते (ता) तानि (विश्वा) सर्वाणि (भुवना) भुवनानि (ववक्षिरे) रुष्टाः स्युः (मित्राय) (वा) (सदम्) स्थानम् (आ) (जीरदानवः) जीवाः (पृषदश्वासः) पृषतस्त्थूलाः सिञ्चिता अश्वा यैस्ते (अनवभ्रराधसः) अनवभ्रोऽपतितं राधो येषान्ते (जिप्यासः) ये जिं कोमलत्वं वर्द्धयन्ति ते (न) इव (वयुनेषु) प्रज्ञापनेषु (धूर्षदः) धुरि सीदन्ति ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये दुष्टेभ्यः क्रुध्यन्ति श्रेष्ठानाह्लादयन्ति ते प्राज्ञा जायन्ते ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे दुष्टांशी क्रोधाने वागतात, श्रेष्ठांना आनंद देतात, ते बुद्धिमान असतात. ॥ ४ ॥