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ते क्षो॒णीभि॑ररु॒णेभि॒र्नाञ्जिभी॑ रु॒द्रा ऋ॒तस्य॒ सद॑नेषु वावृधुः। नि॒मेघ॑माना॒ अत्ये॑न॒ पाज॑सा सुश्च॒न्द्रं वर्णं॑ दधिरे सु॒पेश॑सम्॥

English Transliteration

te kṣoṇībhir aruṇebhir nāñjibhī rudrā ṛtasya sadaneṣu vāvṛdhuḥ | nimeghamānā atyena pājasā suścandraṁ varṇaṁ dadhire supeśasam ||

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Pad Path

ते। क्षो॒णीभिः॑। अरु॒णेभिः॑। न। अ॒ञ्जिऽभिः॑। रु॒द्राः। ऋ॒तस्य॑। सद॑नेषु। व॒वृ॒धुः॒। नि॒ऽमेघ॑मानाः। अत्ये॑न। पाज॑सा। सुऽच॒न्द्रम्। वर्ण॑म्। द॒धि॒रे॒। सु॒ऽपेश॑सम्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:34» Mantra:13 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:21» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुमको (रुद्राः) वायु (क्षोणीभिः) पृथिवियों से (अञ्जिभिः) प्रकट व्यवहारों से (अरुणेभिः) कुछ लालामी लिये प्रकाशों के समान (तस्य) जल के (सदनेषु) स्थानों में (ववृधुः) बढ़ते हैं वा (निमेघमानाः) निश्चित माननेवाले जन (अत्येन) अश्व के समान वेग से और (पाजसा) बल से (सुपेशसम्) सुन्दर रूप युक्त (सुश्चन्द्रम्) सुन्दरता से वर्त्तमान सुवर्ण के समान (वर्णम्) स्वरूप को (दधिरे) धारण करते हैं (ते) वे जानने योग्य हैं ॥१३॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे पवनों के साथ प्रभात वेला बढ़कर दिन होता और समस्त विविध प्रकार का रूप प्रकट करती है, वैसे तुमको अच्छा अपना रूप धारण कर वायु विद्या का प्रकाश करना चाहिये ॥१३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या युष्माभिः रुद्राः क्षोणीभिरञ्जिभिररुणेभिर्न तस्य सदनेषु ववृधुः। निमेघमाना अत्येन पाजसा सुपेशसं सुश्चन्द्रं वर्णं दधिरे ते विज्ञातव्याः ॥१३॥

Word-Meaning: - (ते) (क्षोणीभिः) पृथिवीभिः। क्षोणीति पृथिवीनामसु निघं० १। १। (अरुणेभिः) आरक्तैः प्रकाशादिभिः (न) इव (अञ्जिभिः) प्रकटैः (रुद्राः) वायवः (तस्य) उदकस्य (सदनेषु) स्थानेषु (ववृधुः) वर्द्धन्ते (निमेघमानाः) निश्चितो मेघो येषान्ते (अत्येन) अश्वेनेव वेगेन (पाजसा) बलेन (सुश्चन्द्रम्) सुवर्णमिव। अत्र ह्रस्वाच्चन्द्रोत्तरपदे मन्त्र इति सुडागमः। (वर्णम्) स्वरूपम् (दधिरे) दधति (सुपेशसम्) सुन्दरं रूपम् ॥१३॥
Connotation: - हे मनुष्या यथा वायुभिः सहोषा वर्धित्वा दिनं जायते सर्वं विविधं रूपं प्रकटयति तथा युष्माभिः सुस्वरूपं धृत्वा वायुविद्याः प्रकाशनीयाः ॥१३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जशी वायूबरोबर प्रभातवेला विस्तारित होऊन दिवस उत्पन्न होतो व विविध प्रकारची रूपे ती प्रकट करते तसे तुम्हीही चांगल्या प्रकारे वायूविद्येचे प्रकटीकरण केले पाहिजे. ॥ १३ ॥