अर्ह॑न्बिभर्षि॒ साय॑कानि॒ धन्वार्ह॑न्नि॒ष्कं य॑ज॒तं वि॒श्वरू॑पम्। अर्ह॑न्नि॒दं द॑यसे॒ विश्व॒मभ्वं॒ न वा ओजी॑यो रुद्र॒ त्वद॑स्ति॥
arhan bibharṣi sāyakāni dhanvārhan niṣkaṁ yajataṁ viśvarūpam | arhann idaṁ dayase viśvam abhvaṁ na vā ojīyo rudra tvad asti ||
अर्ह॑न्। बि॒भ॒र्षि॒। साय॑कानि। धन्व॑। अर्ह॑न्। नि॒ष्कम्। य॒ज॒तम्। वि॒श्वऽरू॑पम्। अर्ह॑न्। इ॒दम्। द॒य॒से॒। विश्व॑म्। अभ्व॑म्। न। वै। ओजी॑यः। रु॒द्र॒। त्वत्। अ॒स्ति॒॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे रुद्र यस्त्वमर्हन्त्सन् सायकानि धन्व बिभर्ष्यर्हन्विश्वरूपं यजतं निष्कं बिभर्ष्यर्हन्निदमभ्वं विश्वं दयसे तस्मात्त्वदन्यदोजीयो वै नास्ति ॥१०॥
MATA SAVITA JOSHI
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