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उ॒त स्य दे॒वो भुव॑नस्य स॒क्षणि॒स्त्वष्टा॒ ग्नाभिः॑ स॒जोषा॑ जूजुव॒द्रथ॑म्। इळा॒ भगो॑ बृहद्दि॒वोत रोद॑सी पू॒षा पुरं॑धिर॒श्विना॒वधा॒ पती॑॥

English Transliteration

uta sya devo bhuvanasya sakṣaṇis tvaṣṭā gnābhiḥ sajoṣā jūjuvad ratham | iḻā bhago bṛhaddivota rodasī pūṣā puraṁdhir aśvināv adhā patī ||

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Pad Path

उ॒त। स्यः। दे॒वः। भुव॑नस्य। स॒क्षणिः॑। त्वष्टा॑। ग्नाभिः॑। स॒ऽजोषाः॑। जू॒जु॒व॒त्। रथ॑म्। इळा॑। भगः॑। बृ॒ह॒त्ऽदि॒वा। उ॒त। रोद॑सी॒ इति॑। पू॒षा। पुर॑म्ऽधिः। अ॒श्विनौ॑। अध॑। पती॒ इति॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:31» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:14» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (पूषा) पुष्टिकारक (पुरन्धिः) पुरों का धारण करनेवाला (सक्षणिः) मेली (सजोषाः) सुख-दुःख और प्रीति को बराबर रखनेवाला (भगः) ऐश्वर्यभागी (देवः) प्रकाशक (पती) पालन करनेहारे (अश्विनौ) सूर्यचन्द्रमा के तुल्य (उत) और (दिवा) प्रकाश के साथ (रोदसी) सूर्य भूमी (भुवनस्य) लोकों के (त्वष्टा) छेदन करनेवाले सूर्य के तुल्य (रथम्) विमानादि यान को (जूजुवत्) पहुँचावे (अध) इसके अनन्तर (उत) और इसकी (ग्नाभिः) वाणियों के साथ (इळा) उत्तम वाणी है (स्यः) वह (बृहत्) बड़े सुख को प्राप्त होवे ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो बिजली के तुल्य और सुशिक्षित वाणी के तुल्य वर्त्तते हैं, वे अनेक शिल्प विद्या से साध्य यानों को बना के ऐश्वर्य्यवाले होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यः पूषा पुरन्धिः सक्षणिः सजोषा भगो देवोऽश्विना पती इवोत दिवा रोदसी भुवनस्य त्वष्टा सूर्य इव रथं जूजुवदधातोऽप्यस्य ग्नाभिः सहेळोत्तमा वर्त्तते स्यो बृहत्सुखमाप्नुयात् ॥४॥

Word-Meaning: - (उत) अपि (स्यः) सः (देवः) द्योतनात्मकः (भुवनस्य) लोकसमूहस्य (सक्षणिः) समवेता। अत्र सच धातोरनिः प्रत्ययः (त्वष्टा) छेत्ता (ग्नाभिः) सुशिक्षिताभिर्वाग्भिः (सजोषाः) समानसुखदुःखप्रीतयः (जूजुवत्) गमयेत् (रथम्) (इळा) वाणी (भगः) ऐश्वर्य्यभागी (बृहत्) (दिवा) प्रकाशेन (उत) अपि (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (पूषा) पोषकः (पुरन्धिः) पुराणां धर्त्ता (अश्विनौ) सूर्य्याचन्द्रमसौ (अध) आनन्तर्य्ये। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः (पती) पालयितारौ ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विद्युत्सुशिक्षिता वाणीवच्च प्रवर्त्तन्ते तेऽनेकानि शिल्पसाध्यानि निर्मायैश्वर्यवन्तः स्युः ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्युत्व सुशिक्षित वाणीप्रमाणे कार्य करतात ते शिल्पविद्येद्वारे अनेक याने तयार करून ऐश्वर्यवान होतात. ॥ ४ ॥