अव॑ क्षिप दि॒वो अश्मा॑नमु॒च्चा येन॒ शत्रुं॑ मन्दसा॒नो नि॒जूर्वाः॑। तो॒कस्य॑ सा॒तौ तन॑यस्य॒ भूरे॑र॒स्माँ अ॒र्धं कृ॑णुतादिन्द्र॒ गोना॑म्॥
ava kṣipa divo aśmānam uccā yena śatrum mandasāno nijūrvāḥ | tokasya sātau tanayasya bhūrer asmām̐ ardhaṁ kṛṇutād indra gonām ||
अव॑। क्षि॒प॒। दि॒वः। अश्मा॑नम्। उ॒च्चा। येन॑। शत्रु॑म्। म॒न्द॒सा॒नः। नि॒ऽजूर्वाः॑। तो॒कस्य॑। सा॒तौ। तन॑यस्य। भूरेः॑। अ॒स्मान्। अ॒र्धम्। कृ॒णु॒ता॒त्। इ॒न्द्र॒। गोना॑म्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे इन्द्र सभापते राजन् मन्दसानस्त्वं येन भूरेस्तोकस्य तनयस्य सातावस्मान् गोनामर्द्धं कृणुतात्तेन यथा सूर्य्य उच्चा धनानि दिवः प्राप्तमश्मानं भूमौ प्रक्षिपति तथा शत्रुमव क्षिप दुष्टान् निजूर्वाः ॥५॥
MATA SAVITA JOSHI
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