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देव॑ बर्हि॒र्वर्ध॑मानं सु॒वीरं॑ स्ती॒र्णं रा॒ये सु॒भरं॒ वेद्य॒स्याम्। घृ॒तेना॒क्तं व॑सवः सीदते॒दं विश्वे॑ देवा आदित्या य॒ज्ञिया॑सः॥

English Transliteration

deva barhir vardhamānaṁ suvīraṁ stīrṇaṁ rāye subharaṁ vedy asyām | ghṛtenāktaṁ vasavaḥ sīdatedaṁ viśve devā ādityā yajñiyāsaḥ ||

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Pad Path

देव॑। ब॒र्हिः॒। वर्ध॑मानम्। सु॒ऽवीर॑म्। स्ती॒र्णम्। रा॒ये। सु॒ऽभर॑म्। वेदी॒ इति॑। अ॒स्याम्। घृ॒तेन॑। अ॒क्तम्। व॒स॒वः॒। सी॒द॒त॒। इ॒दम्। विश्वे॑। दे॒वाः॒। आ॒दि॒त्याः॒। य॒ज्ञिया॑सः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:3» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:22» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (देव) अग्नि के समान प्रकाशमान ! आप (राये) धन के लिये (स्तीर्णम्) जो ढँपा हुआ (सुवीरम्) जिससे अच्छे-अच्छे वीर होते हैं, उस (वर्द्धमानम्) बढ़ते हुए (सुभरम्) सुख के धारण करने योग्य (बर्हिः) जल को (अस्याम्) इस (वेदी) वेदी में (घृतेन) घी से (अक्तम्) युक्त करो। हे (वसवः) पृथिव्यादिकों वा (आदित्याः) महीनों के समान विद्वानों ! तुम जैसे (यज्ञियासः) यज्ञ करने में समर्थ (विश्वे) समस्त (देवाः) दिव्य गुणयुक्त विद्वान् जन (इदम्) इस धन को प्राप्त होते हैं, वैसे उसको (सीदत) प्राप्त होओ ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि अवश्य अन्तरिक्षस्थ जल सुगन्ध्यादि पदार्थ युक्त करें, जिससे समस्त प्राणी आरोग्य हों ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे देव त्वं राये स्तीर्णं सुवीरं वर्द्धमानं सुभरं बर्हिरस्यां वेदी घृतेनाक्तं कुरु। हे वसव इवादित्याश्चेव यूयं यथा यज्ञियासो विश्वे देवा इदमासीदन्ति तथा सीदत ॥४॥

Word-Meaning: - (देव) अग्निरिव द्योतमान (बर्हिः) उदकम्। बर्हिरित्युदकना० निघं० १। १२ (वर्द्धमानम्) (सुवीरम्) शोभना वीरा यस्मात् (स्तीर्णम्) आच्छादितम् (राये) धनाय (सुभरम्) भर्त्तुं योग्यम् (वेदी) वेद्याम्। अत्र सुपां सुलुगिति ङेर्लोपः (अस्याम्) (घृतेन) आज्येन (अक्तम्) युक्तम् (वसवः) पृथिव्यादयः (सीदत) प्राप्नुत (इदम्) (विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यगुणयुक्ताः (आदित्याः) मासाः (यज्ञियासः) यज्ञमर्हाः ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैरवश्यमन्तरिक्षस्थं जलं सुगन्ध्यादिपदार्थयुक्तं कर्त्तव्यं यतः सर्वे प्राणिनोऽरोगाः स्युः ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी अंतरिक्षातील जल सुगंधित पदार्थांनी युक्त करावे, ज्यामुळे संपूर्ण प्राणी निरोगी व्हावेत. ॥ ४ ॥