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समि॑द्धो अ॒ग्निर्निहि॑तः पृथि॒व्यां प्र॒त्यङ् विश्वा॑नि॒ भुव॑नान्यस्थात्। होता॑ पाव॒कः प्र॒दिवः॑ सुमे॒धा दे॒वो दे॒वान्य॑जत्व॒ग्निरर्ह॑न्॥

English Transliteration

samiddho agnir nihitaḥ pṛthivyām pratyaṅ viśvāni bhuvanāny asthāt | hotā pāvakaḥ pradivaḥ sumedhā devo devān yajatv agnir arhan ||

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Pad Path

सम्ऽइ॑द्धः। अ॒ग्निः। निऽहि॑तः। पृ॒थि॒व्याम्। प्र॒त्यङ्। विश्वा॑नि। भुव॑नानि। अ॒स्था॒त्। होता॑। पा॒व॒कः। प्र॒ऽदिवः॑। सु॒ऽमे॒धाः। दे॒वः। दे॒वान्। य॒ज॒तु॒। अ॒ग्निः। अर्ह॑न्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:3» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:22» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ग्यारह चावाले तीसरे सूक्त का प्रारम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र में अग्नि का वर्णन किया है।

Word-Meaning: - जैसे (सुमेधाः) शोभन मेधा बुद्धि जिसकी वह (देवः) दिव्य विद्वान् (देवान्) विद्वानों को (यजतु) प्राप्त हो वैसे (होता) सर्व पदार्थों का ग्रहण करनेवाला (पावकः) पवित्र करनेवाला (अर्हन्) योग्यता को प्राप्त हुआ (अग्निः) अग्नि भी है जैसे (पृथिव्याम्) पृथिवी में (निहितः) रक्खा हुआ (समिद्धः) अच्छे प्रकार प्रदीप्त (प्रत्यङ्) प्रत्येक पदार्थों को प्राप्त होनेवाला (अग्निः) अग्नि (विश्वानि) सब (भुवनानि) भूगोलों को (अस्थात्) निरन्तर स्थिर होता है। वैसा (प्रदिवः) जिसकी उत्तम विद्या प्रकाशित है, वह विद्वान् हो ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। यदि इस संसार में ईश्वर अग्नि को न रचे तो कोई प्राणी सुख को न प्राप्त हो सके। जैसे विद्वान् विद्वानों का सत्कार करें, वैसे अन्यलोग भी विद्वानों का सत्कार करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाऽग्निवर्णनमाह।

Anvay:

यथा सुमेधा देवो विद्वान् देवान् यजतु तथा होता पावकोऽर्हन्नग्निरस्ति। यथा पृथिव्यां निहितः समिद्धः प्रत्यङ्ङग्निर्विश्वानि भुवनान्यस्थात् तथा प्रदिवो विद्वान् भवेत् ॥१॥

Word-Meaning: - (समिद्धः) सम्यक् प्रदीप्तः (अग्निः) पावकः (निहितः) धृतः (पृथिव्याम्) भूमौ (प्रत्यङ्) प्रत्यञ्चतीति (विश्वानि) सर्वाणि (भुवनानि) भूगोलानि (अस्थात्) तिष्ठति (होता) आदाता (पावकः) पवित्रकरः (प्रदिवः) प्रकृष्टा द्यौः प्रकाशिता विद्या यस्य (सुमेधाः) शोभना मेधा प्रज्ञा यस्य सः (देवः) दिव्यः (देवान्) विदुषः (यजतु) सङ्गच्छतु (अग्निः) वह्निः (अर्हन्) सत्कुर्वन् ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यद्यत्रेश्वरोऽग्निं न रचयेत्तर्हि कोऽपि प्राणी सुखमाप्तुं न शक्नुयात् तथा विद्वान् विदुषः सत्कुर्यात्तथाऽन्येऽपि सत्कुर्युः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी, विद्वान व स्त्री-पुरुषांच्या आचरणाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ईश्वराने या जगात अग्नी निर्माण केला नसता तर कोणताही प्राणी सुखी झाला नसता. जसा विद्वान विद्वानांचा सत्कार करतो तसे इतर लोकांनीही विद्वानांचा सत्कार करावा. ॥ १ ॥