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वि मच्छ्र॑थाय रश॒नामि॒वाग॑ ऋ॒ध्याम॑ ते वरुण॒ खामृ॒तस्य॑। मा तन्तु॑श्छेदि॒ वय॑तो॒ धियं॑ मे॒ मा मात्रा॑ शार्य॒पसः॑ पु॒र ऋ॒तोः॥

English Transliteration

vi mac chrathāya raśanām ivāga ṛdhyāma te varuṇa khām ṛtasya | mā tantuś chedi vayato dhiyam me mā mātrā śāry apasaḥ pura ṛtoḥ ||

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Pad Path

वि। मत्। श्र॒थ॒य॒। र॒श॒नाम्ऽइ॑व। आगः॑। ऋ॒ध्याम॑। ते॒। व॒रु॒ण॒। खाम्। ऋ॒तस्य॑। मा। तन्तुः॑। छे॒दि॒। वय॑तः। धिय॑म्। मे॒। मा। मात्रा॑। शा॒रि॒। अ॒पसः॑। पु॒रा। ऋ॒तोः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:28» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:9» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्यार्थी लोग कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (वरुण) श्रेष्ठ पुरुष आप (रशनामिव) रस्सी के तुल्य (मत्,आगः) मुझसे अपराध को (वि,श्रथय) विशेष कर नष्ट कीजिये जिससे (ते) आपके समीप हमलोग (ध्याम) उन्नत हों जैसे (तस्य) जल की (खाम्) नदी को नहीं नष्ट करते वैसे आपसे (तन्तुः) मूल (मा) न (छेदि) नष्ट किया जाये (वयतः) प्राप्त होते हुए (मे) मेरी (धियम्) बुद्धि को नष्ट न कीजिये (तोः) तु समय से (पुरा) पहले (अपसः) कर्म से मत (शारि) नष्ट कीजिये और (मात्रा) माता के साथ विरोध (मा) मत कर ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे रस्सी से बंधे हुए घोड़े नियम से चलते हैं, वैसे ही माता-पिता और आचार्य के नियम में बंधे हुए बालक विद्यार्थी विद्या और सुशिक्षा को ग्रहण करें, कभी मादक द्रव्य के सेवन से बुद्धि को नष्ट न करें, विवाह करके सदैव तुगामी हों और सन्तानों के प्रवाह को न तोड़ें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्यार्थिनः कीदृशाः स्युरित्याह।

Anvay:

हे वरुण त्वं रशनामिव मदागो विश्रथय येन ते तव समीपे वयमृध्याम। यथर्त्तस्य खां न छिन्दति तथा त्वया तन्तुर्मा छेदि। वयतो मे धियं मा छेदि तोः पुरा अपसो माशारि। मात्रा सह विरोधं मा कुर्य्याः ॥५॥

Word-Meaning: - (वि) (मत्) मत्तः (श्रथय) हिन्धि। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः (रशनामिव) (आगः) अपराधम् (ध्याम) (ते) तव (वरुण) (खाम्) नदीम्। स्वा इति नदीना० निघं० १। १३ (तस्य) जलस्य (मा) (तन्तुः) मूलम् (छेदि) छिन्द्याः (वयतः) प्राप्नुवतः (धियम्) (मे) मम (मा) (मात्रा) जनन्या (शारि) हिंस्याः (अपसः) कर्मणः (पुरा) (तोः) तुसमयात् ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा रसनया बद्धा अश्वा नियमेन गच्छन्ति तथैव मा मात्रा पित्राऽचार्येण बद्धा बालका नियताः सन्तो विद्यां सुशिक्षां च गृह्णन्तु कदाचिन्मादकद्रव्यसेवनेन बुद्धिनाशं मा कुर्या विवाहं कृत्वा सदैवर्त्तुगामिनः स्युः। सन्तानसन्ततिं माच्छिन्द्याः ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे बांधलेले घोडे नियमाने चालतात तसेच माता, पिता व आचार्यांच्या नियमानुसार विद्यार्थ्यांनी विद्या व सुशिक्षण ग्रहण करावे, मादक द्रव्याच्या सेवनाने बुद्धी नष्ट करू नये. विवाह करून सदैव ऋतुगामी व्हावे. संतानाचा क्रम तोडू नये. ॥ ५ ॥