Go To Mantra

प्र सी॑मादि॒त्यो अ॑सृजद्विध॒र्ताँ ऋ॒तं सिन्ध॑वो॒ वरु॑णस्य यन्ति। न श्रा॑म्यन्ति॒ न वि मु॑चन्त्ये॒ते वयो॒ न प॑प्तू रघु॒या परि॑ज्मन्॥

English Transliteration

pra sīm ādityo asṛjad vidhartām̐ ṛtaṁ sindhavo varuṇasya yanti | na śrāmyanti na vi mucanty ete vayo na paptū raghuyā parijman ||

Mantra Audio
Pad Path

प्र। सी॒म्। आ॒दि॒त्यः। अ॒सृ॒ज॒त्। वि॒ऽध॒र्ता। ऋ॒तम्। सिन्ध॑वः। वरु॑णस्य। य॒न्ति॒। न। श्रा॒म्य॒न्ति॒। न। वि। मु॒च॒न्ति॒। ए॒ते। वयः॑। न। प॒प्तुः॒। र॒घु॒ऽया। परि॑ऽज्मन्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:28» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:9» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:4


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

यह जगत् कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो जिस कारण (विधर्त्ता) अनेक प्रकार के लोकों का धारण करनेवाला (आदित्यः) सूर्य (सीम्) सब ओर से (तम्) जल को (असृजत्) उत्पन्न करता है इससे (वरुणस्य) मेघ के सम्बन्ध से (सिन्धवः) नदियाँ (यन्ति) चलतीं प्राप्त होतीं (न) (श्राम्यन्ति) स्थिर नहीं होतीं (न,मुचन्ति) अपने चलन रूप कार्य को नहीं छोड़तीं किन्तु (एते) ये नदी आदि जलाशय (वयः) पक्षियों के (न) तुल्य (रघुया) शीघ्रगामी (परिज्मन्) सब ओर से वर्त्तमान भूमि पर (प्र,पप्तुः) अच्छे प्रकार गिरते चलते हैं वैसे तुम लोग भी सब ओर व्यवहार सिध्यर्थ चलना फिरना आदि व्यवहार करो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। यह सब जगत् वायु और जल के तुल्य चलायमान है। जैसे नदियाँ चलतीं पृथिवी का जल ऊपर जाता वहाँ भी चलायमान होता फिर भूमि पर गिरता। इस प्रकार जीवों की संसार में गति है ॥४॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

इदं जगत्कीदृशमित्याह।

Anvay:

हे मनुष्या यतो विधर्त्तादित्यः सीमृतमसृजत्तस्माद्वरुणस्य सकाशात् सिन्धवो यन्ति न श्राम्यन्ति न विमुचन्त्येते वयो न रघुया परिज्मन् प्रपप्तुस्तथा यूयमपि वर्त्तध्वम् ॥४॥

Word-Meaning: - (प्र) (सीम्) सर्वतः (आदित्यः) सूर्य्यः (असृजत्) सृजति (विधर्त्ता) विविधानां लोकानां धारकः (तम्) उदकम् (सिन्धवः) नद्यः (वरुणस्य) मेघस्य। वरुण इति पदनामसु निघं० ५। ६ (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (न) (श्राम्यन्ति) स्थिरा भवन्ति (न) (वि) (मुचन्ति) उपरमन्ति (एते) (वयः) पक्षिणः (न) इव (पप्तुः) पतन्ति (रघुया) रघवः क्षिप्रं गन्तारः। अत्र सुपां सुलुगिति जसः स्थाने याजादेशः (परिज्मन्) परितः सर्वतो वर्त्तमानायां भूमौ ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। इदञ्जगद्वायुवज्जलवत्सर्वमस्थिरं यथा नद्यश्चलन्ति भौममुदकमुपरि गच्छति तत्र चलति पुनर्भूमाववपतत्येवं जीवानां गतिरस्ति ॥४॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे सर्व जग वायू व जलाप्रमाणे चलायमान आहे. जशा नद्या प्रवाहित होतात, पृथ्वीवरील जल वर जाते, तेथेही चलायमान होते व पुन्हा पृथ्वीवर येते त्याप्रमाणे जीवांची संसारात गती आहे. ॥ ४ ॥