प्र सी॑मादि॒त्यो अ॑सृजद्विध॒र्ताँ ऋ॒तं सिन्ध॑वो॒ वरु॑णस्य यन्ति। न श्रा॑म्यन्ति॒ न वि मु॑चन्त्ये॒ते वयो॒ न प॑प्तू रघु॒या परि॑ज्मन्॥
pra sīm ādityo asṛjad vidhartām̐ ṛtaṁ sindhavo varuṇasya yanti | na śrāmyanti na vi mucanty ete vayo na paptū raghuyā parijman ||
प्र। सी॒म्। आ॒दि॒त्यः। अ॒सृ॒ज॒त्। वि॒ऽध॒र्ता। ऋ॒तम्। सिन्ध॑वः। वरु॑णस्य। य॒न्ति॒। न। श्रा॒म्य॒न्ति॒। न। वि। मु॒च॒न्ति॒। ए॒ते। वयः॑। न। प॒प्तुः॒। र॒घु॒ऽया। परि॑ऽज्मन्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
यह जगत् कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
इदं जगत्कीदृशमित्याह।
हे मनुष्या यतो विधर्त्तादित्यः सीमृतमसृजत्तस्माद्वरुणस्य सकाशात् सिन्धवो यन्ति न श्राम्यन्ति न विमुचन्त्येते वयो न रघुया परिज्मन् प्रपप्तुस्तथा यूयमपि वर्त्तध्वम् ॥४॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A