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उ॒भे अ॑स्मै पीपयतः समी॒ची दि॒वो वृ॒ष्टिं सु॒भगो॒ नाम॒ पुष्य॑न्। उ॒भा क्षया॑वा॒जय॑न्याति पृ॒त्सूभावर्धौ॑ भवतः सा॒धू अ॑स्मै॥

English Transliteration

ubhe asmai pīpayataḥ samīcī divo vṛṣṭiṁ subhago nāma puṣyan | ubhā kṣayāv ājayan yāti pṛtsūbhāv ardhau bhavataḥ sādhū asmai ||

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Pad Path

उ॒भे इति॑। अ॒स्मै॒। पी॒प॒य॒तः॒। स॒मी॒ची इति॑ स॒म्ऽई॒ची। दि॒वः। वृ॒ष्टिम्। सु॒ऽभगः॑। नाम॑। पुष्य॑न्। उ॒भा। क्षयौ॑। आ॒ऽजय॑न्। या॒ति॒। पृ॒त्ऽसु। उ॒भौ। अर्धौ॑। भ॒व॒तः॒। सा॒धू इति॑। अ॒स्मै॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:27» Mantra:15 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:8» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जैसे (समीची) जो दीप्ति को सम्यक् प्राप्त होती वह स्त्री और (सुभगः) शोभन ऐश्वर्यवाला राजा (दिवः) दिव्य शुद्ध आकाश से (वृष्टिम्) यज्ञादि द्वारा वर्षा कराते (नाम) जल को (पुष्यन्) पुष्ट करते हुए वैसे (अस्मै) इस राज्य के लिये (उभे) दोनों राजा-रानी (पीपयतः) उन्नति करते हैं (उभा) दोनों (क्षयौ) निवास करते हुए (अर्द्धौ) राज्य को समृद्ध करनेवाले (अस्मै) इस राज्य के लिये (साधू) शुभ चरित्र में स्थित (भवतः) होवें वे (पृत्सु) सङ्ग्रामों में विजय करनेवाले होवें, उन दोनों का सङ्गी (आ,जयन्) विजय करता हुआ सुखको (याति) प्राप्त होता है ॥१५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो स्त्री-पुरुष सूर्यदीप्ति जगत् को जैसे, वैसे सब राज्य को पुष्ट करें और सुन्दर चरित्रोंवाले हों, वे न्यायाधीशपन को प्राप्त होते हैं ॥१५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यथा समीची सुभगश्च दिवो वृष्टिं कुरुतो नाम पुष्यंस्तथाऽस्मानुभे पीपयतः। उभा क्षयावुभावर्द्धावस्मै साधू भवतस्तौ पृत्सु विजयमानौ स्याताम्। तत्संग्याजयन् सुखं याति ॥१५॥

Word-Meaning: - (उभे) पुरुषः स्त्री च (अस्मै) राष्ट्राय (पीपयतः) वर्द्धयतः (समीची) या दीप्तिं सम्यगञ्चति सा (दिवः) दिव्यादाकाशात् (वृष्टिम्) (सुभगः) शोभनैश्वर्यः (नाम) जलम् (पुष्यन्) पुष्यन्तौ। अत्र विभक्तिलुक् (उभा) उभौ (क्षयौ) निवसन्तौ (आजयन्) समन्ताद्विजयमानः (याति) गच्छति (पृत्सु) सङ्ग्रामेषु (उभौ) (अर्द्धौ) वर्द्धकौ (भवतः) (साधू) शुभचरित्रस्थौ (अस्मै) ॥१५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये स्त्रीपुरुषाः सूर्यदीप्तिर्जगत्वत्सर्वं राज्यं पोषयेयुः। शुभचरित्राश्च स्युस्ते न्यायाधीशत्वमर्हन्ति ॥१५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सूर्याचे तेज जसे जगाला प्रकाशित करते, तसे जे स्त्री-पुरुष राज्याचे पोषण करतात व उत्तम चरित्राचे असतात ते न्यायाधीश बनतात. ॥ १५ ॥