अदि॑ते॒ मित्र॒ वरु॑णो॒त मृ॑ळ॒ यद्वो॑ व॒यं च॑कृ॒मा कच्चि॒दागः॑। उ॒र्व॑श्या॒मभ॑यं॒ ज्योति॑रिन्द्र॒ मा नो॑ दी॒र्घा अ॒भि न॑श॒न्तमि॑स्राः॥
adite mitra varuṇota mṛḻa yad vo vayaṁ cakṛmā kac cid āgaḥ | urv aśyām abhayaṁ jyotir indra mā no dīrghā abhi naśan tamisrāḥ ||
अदि॑ते। मित्र॑। वरु॑ण। उ॒त। मृ॒ळ॒। यत्। वः॒। व॒यम्। च॒कृ॒म। कत्। चि॒त्। आगः॑। उ॒रु। अ॒श्या॒म्। अभ॑यम्। ज्योतिः॑। इ॒न्द्र॒। मा। नः॒। दी॒र्घाः। अ॒भि। न॒श॒न्। तमि॑स्राः॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे अदिते इन्द्र मित्रोत वरुण त्वमस्मान् मृळ यद्वः कश्चिदुर्वागो वयं चकृम तत् क्षम्यतां यतोऽभयं ज्योतिरहमश्याम्। नो दीर्घास्तमिस्रा माभिनशन् ॥१४॥
MATA SAVITA JOSHI
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