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इ॒मा गिर॑ आदि॒त्येभ्यो॑ घृ॒तस्नूः॑ स॒नाद्राज॑भ्यो जु॒ह्वा॑ जुहोमि। शृ॒णोतु॑ मि॒त्रो अ॑र्य॒मा भगो॑ नस्तुविजा॒तो वरु॑णो॒ दक्षो॒ अंशः॑॥

English Transliteration

imā gira ādityebhyo ghṛtasnūḥ sanād rājabhyo juhvā juhomi | śṛṇotu mitro aryamā bhago nas tuvijāto varuṇo dakṣo aṁśaḥ ||

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Pad Path

इ॒माः। गिरः॑। आ॒दि॒त्येभ्यः॑। घृ॒तऽस्नूः॑। स॒नात्। राज॑ऽभ्यः। जु॒ह्वा॑। जु॒हो॒मि॒। शृ॒णोतु॑। मि॒त्रः। अ॒र्य॒मा। भगः॑। नः॒। तु॒वि॒ऽजा॒तः। वरु॑णः। दक्षः॑। अंशः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:27» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:6» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सत्ताईसवें सूक्त का आरम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में राजपुरुष कैसे हों, इस विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे विद्वान् जैसे मैं (आदित्येभ्यः) महीनों के तुल्य (राजभ्यः) राजपुरुषों के लिये जिन (इमाः) इन प्रत्यक्ष (घृतस्नूः) घृत को शुद्ध करानेवाली (गिरः) शुद्ध की हुई सत्यवाणियों को (जुह्वा) जिह्वारूप साधन से (जुहोमि) होम करता अर्थात् निवेदन करता हूँ उन (नः) हमारी वाणियों को यह (मित्रः) मित्र बुद्धि (भगः) सेवने योग्य (तुविजातः) बलादि गुणों से प्रसिद्ध (वरुणः) श्रेष्ठ (दक्षः) चतुर (अंशः) दुष्टों के सम्यक् विनाशक (अर्यमा) न्यायाधीश आप (सनात्) सदैव (शृणोतु) सुनिये ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सूर्य्य के तुल्य तेजस्वी राजा लोग और उनके सभासद् प्रजाजनों की सुख-दुःख युक्त निवेदन की वाणियों को सुन के न्याय करते वे राज्य बढ़ाने को समर्थ होते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजजनाः कीदृशाः स्युरित्याह।

Anvay:

हे विद्वन् यथाहमादित्येभ्य इव राजभ्यो या इमा घृतस्नूर्गिरो जुह्वा जुहोमि ता नो गिरः स मित्रोऽर्य्यमा भगस्तुविजातो वरुणो दक्षोंऽशो भवान् सनात् शृणोतु ॥१॥

Word-Meaning: - (इमाः) (गिरः) संस्कृता वाणीः (आदित्येभ्यः) मासेभ्यः (घृतस्नूः) या घृतमुदकं स्नन्ति शोधयन्ति ताः (सनात्) सदा (राजभ्यः) (जुह्वा) जिह्वया साधनेन (जुहोमि) (शृणोतु) (मित्रः) सखा (अर्य्यमा) न्यायेशः (भगः) सेवनीयः (नः) अस्माकम् (तुविजातः) बलादिगुणैः प्रसिद्धः (वरुणः) श्रेष्ठः (दक्षः) चतुरः (अंशः) दुष्टानां सम्यग् घातकः ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। य आदित्यवद्वर्त्तमाना राजानस्तत्सभासदश्च प्रजाजनानां सुखदुःखान्विता निवेदिता वाचः श्रुत्वा न्यायं कुर्वन्ति ते राज्यं वर्द्धयितुं शक्नुवन्ति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सूर्याप्रमाणे तेजस्वी असलेले राजे व त्यांचे सभासद प्रजेच्या सुख-दुःखाचे निवेदन ऐकून न्याय करतात ते राज्य वाढविण्यास समर्थ असतात. ॥ १ ॥