ऋ॒जुरिच्छंसो॑ वनवद्वनुष्य॒तो दे॑व॒यन्निददे॑वयन्तम॒भ्य॑सत्। सु॒प्रा॒वीरिद्व॑नवत्पृ॒त्सु दु॒ष्टरं॒ यज्वेदय॑ज्यो॒र्वि भ॑जाति॒ भोज॑नम्॥
ṛjur ic chaṁso vanavad vanuṣyato devayann id adevayantam abhy asat | suprāvīr id vanavat pṛtsu duṣṭaraṁ yajved ayajyor vi bhajāti bhojanam ||
ऋ॒जुः। इत्। शंसः॑। व॒न॒व॒त्। व॒नु॒ष्य॒तः। दे॒व॒यन्। इत्। अदे॑वऽयन्तम्। अ॒भि। अ॒स॒त्। सु॒प्र॒ऽअ॒वीः। इत्। व॒न॒व॒त्। पृ॒त्ऽसु। दु॒स्तर॑म्। यज्वा॑। इत्। अयज्योः॑। वि। भ॒जा॒ति॒। भोज॑नम्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब इस दूसरे मण्डल के छब्बीसवें सूक्त का आरम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र से विद्वानों को क्या कर्त्तव्य है, इस विषय को कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ विदुषां किं कार्यमस्तीत्याह।
यो यज्वाऽयज्योरिद्भोजनं विभजाति स इत्सुप्रावीः सन्पृत्सु वनवद्दुष्टरं विभजाति यो देवयन्नदेवयन्तमिदभ्यसत्स वनवच्छंसो वनुष्यत इदृजुस्स्यात् ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वीच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.