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ऋ॒जुरिच्छंसो॑ वनवद्वनुष्य॒तो दे॑व॒यन्निददे॑वयन्तम॒भ्य॑सत्। सु॒प्रा॒वीरिद्व॑नवत्पृ॒त्सु दु॒ष्टरं॒ यज्वेदय॑ज्यो॒र्वि भ॑जाति॒ भोज॑नम्॥

English Transliteration

ṛjur ic chaṁso vanavad vanuṣyato devayann id adevayantam abhy asat | suprāvīr id vanavat pṛtsu duṣṭaraṁ yajved ayajyor vi bhajāti bhojanam ||

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Pad Path

ऋ॒जुः। इत्। शंसः॑। व॒न॒व॒त्। व॒नु॒ष्य॒तः। दे॒व॒यन्। इत्। अदे॑वऽयन्तम्। अ॒भि। अ॒स॒त्। सु॒प्र॒ऽअ॒वीः। इत्। व॒न॒व॒त्। पृ॒त्ऽसु। दु॒स्तर॑म्। यज्वा॑। इत्। अयज्योः॑। वि। भ॒जा॒ति॒। भोज॑नम्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:26» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब इस दूसरे मण्डल के छब्बीसवें सूक्त का आरम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र से विद्वानों को क्या कर्त्तव्य है, इस विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - जो (यज्वा) मिलनसार जन (अयज्योः) विरोधी के (इत्) ही (भोजनम्) भोग्य पदार्थ को (वि, भजाति) पृथक् करता है वह (इत्) ही (सुप्रावीः) सुन्दर रक्षक हुआ (पृत्सु) सङ्ग्रामों में (वनवत्) वन के तुल्य (दुष्टरम्) दुःख से उल्लङ्घन करने योग्य शत्रुदल को छिन्न-भिन्न करता है जो (देवयन्) अपने को विद्वान् मानता हुआ (अदेवयन्तम्) मूर्ख का सा आचरण करते हुए को (इत्) ही (अभि,असत्) सन्मुख प्राप्त हो वह (वनवत्) किरणों के तुल्य (शंसः) स्तुति करने योग्य (वनुष्यतः) हिंसा करनेवाले से (इत्) ही (जुः) सरल कोमल स्वभाव होवे ॥१॥
Connotation: - जो मनुष्य पण्डिताई को चाहते मूर्खता को छोड़ते और शत्रुओं को जीतते हुए भोग्य पदार्थों को विशेष कर सेवन करते हैं, वे दुःखों को छोड़ देते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विदुषां किं कार्यमस्तीत्याह।

Anvay:

यो यज्वाऽयज्योरिद्भोजनं विभजाति स इत्सुप्रावीः सन्पृत्सु वनवद्दुष्टरं विभजाति यो देवयन्नदेवयन्तमिदभ्यसत्स वनवच्छंसो वनुष्यत इदृजुस्स्यात् ॥१॥

Word-Meaning: - (जुः) सरलः (इत्) एव (शंसः) स्तुत्यः (वनवत्) किरणवत् (वनुष्यतः) हिंसतः (देवयन्) आत्मानं देवमिच्छन् (इत्) (अदेवयन्तम्) आत्मानं देवमिच्छन्तम् (अभि) (असत्) स्यात् (सुप्रावीः) सुष्ठुरक्षकः (इत्) (वनवत्) (पृत्सु) सङ्ग्रामेषु (दुष्टरम्) दुःखेनोल्लङ्घयितुं योग्यम् (यज्वा) सङ्गन्ता (इत्) (अयज्योः) असङ्गन्तुः (वि) (भजाति) विभजेत् (भोजनम्) ॥१॥
Connotation: - ये मनुष्याः पाण्डित्यमिच्छन्तो मौर्ख्यं जहन्तः शत्रून् विजयमाना भोग्यान् पदार्थान् विभजेयुस्ते दुःखानि वर्जयेयुः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वीच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जी माणसे पांडित्याची इच्छा धरतात, मूर्खपणा सोडून देतात व शत्रूंना जिंकून भोग्य पदार्थांचे विशेष सेवन करतात ती दुःख नष्ट करतात. ॥ १ ॥