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ऋ॒तज्ये॑न क्षि॒प्रेण॒ ब्रह्म॑ण॒स्पति॒र्यत्र॒ वष्टि॒ प्र तद॑श्नोति॒ धन्व॑ना। तस्य॑ सा॒ध्वीरिष॑वो॒ याभि॒रस्य॑ति नृ॒चक्ष॑सो दृ॒शये॒ कर्ण॑योनयः॥

English Transliteration

ṛtajyena kṣipreṇa brahmaṇas patir yatra vaṣṭi pra tad aśnoti dhanvanā | tasya sādhvīr iṣavo yābhir asyati nṛcakṣaso dṛśaye karṇayonayaḥ ||

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Pad Path

ऋ॒तऽज्ये॑न। क्षि॒प्रेण॑। ब्रह्म॑णः। पतिः॑। यत्र॑। वष्टि॑। प्र। तद्। अ॒श्नो॒ति॒। धन्व॑ना। तस्य॑। सा॒ध्वीः। इष॑वः। याभिः॑। अस्य॑ति। नृ॒ऽचक्ष॑सः। दृ॒शये॑। कर्ण॑ऽयोनयः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:24» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:2» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - (यत्र) जहाँ (ब्रह्मणः) धन का (पतिः) स्वामी (तज्येन) ठीक-ठीक प्रत्यञ्चावाले (क्षिप्रेण) शीघ्रकारी (धन्वना) धनुष से जिसको (प्र,वष्टि) अच्छे प्रकार चाहता (तत्) उसको (अश्नोति) प्राप्त होता (तस्य) उसके (साध्वीः) श्रेष्ठ (इषवः) बाण होवें (याभिः) जिनसे शत्रुओं को (अस्यति) हटावे दूर करे उनसे (दृशये) देखने अर्थात् जानने के लिये (कर्णयोनयः) कान आदि कारणवाले (नृचक्षसः) मनुष्यों के देखने योग्य विषय हैं, उनको वहाँ प्राप्त होता है ॥८॥
Connotation: - जैसे वीर पुरुष धनुष आदि शस्त्र और आग्नेयादि अस्त्र से शत्रुओं को पराजित करते हैं, वैसे धर्मात्मा दोषों को जीत लेता है ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यत्र ब्रह्मणस्पतिरृतज्येन क्षिप्रेण धन्वना यत्प्रवष्टि तदश्नोति तस्य साध्वीरिषवः स्युः। याभिः शत्रूनस्यति ताभिर्दृशये कर्णयोनयो नृचक्षसस्सन्ति ताँस्तत्राश्नोति ॥८॥

Word-Meaning: - (तज्येन) ता सत्या ज्या यस्मिँस्तेन (क्षिप्रेण) क्षिप्रकारिणा (ब्रह्मणः) धनस्य (पतिः) पालकः (यत्र) यस्मिन् समये (वष्टि) कामयते (प्र) (तत्) (अश्नोति) प्राप्नोति (धन्वना) धनुषा (तस्य) (साध्वीः) श्रेष्ठाः (इषवः) बाणाः (याभिः) (अस्यति) शत्रून् प्रक्षिपतुः (नृचक्षसः) नृभिर्द्रष्टव्याः (दृशये) दर्शनाय (कर्णयोनयः) कर्णं श्रोत्रं योनिर्येषान्ते ॥८॥
Connotation: - यथा वीरा धनुरादिशस्त्रेणाग्नेयाद्यस्त्रेण च शत्रून् पराजयन्ते तथा धर्मात्मा दोषान् विजयते ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे वीर पुरुष धनुष्य इत्यादी शस्त्रे व आग्नेय इत्यादी अस्त्रांनी शत्रूंना पराजित करतात तसे धर्मात्मा दोषांना जिंकतात. ॥ ८ ॥