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तद्दे॒वानां॑ दे॒वत॑माय॒ कर्त्व॒मश्र॑थ्नन्दृ॒ळ्हाव्र॑दन्त वीळि॒ता। उद्गा आ॑ज॒दभि॑न॒द्ब्रह्म॑णा ब॒लमगू॑ह॒त्तमो॒ व्य॑चक्षय॒त्स्वः॑॥

English Transliteration

tad devānāṁ devatamāya kartvam aśrathnan dṛḻhāvradanta vīḻitā | ud gā ājad abhinad brahmaṇā valam agūhat tamo vy acakṣayat svaḥ ||

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Pad Path

तत्। दे॒वाना॑म्। दे॒वऽत॑माय। कर्त्व॑म्। अश्र॑थ्नन्। दृ॒ळ्हा। अव्र॑दन्त। वी॒ळि॒ता। उत्। गाः। आ॒ज॒त्। अभि॑नत्। ब्रह्म॑णा। ब॒लम्। अगू॑हत्। तमः॑। वि। अ॒च॒क्ष॒य॒त्। स्व१॒॑रिति॑ स्वः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:24» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:1» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे विद्वन् जैसे (देवानाम्) प्रकाशमान लोकों में (देवतमाय) अत्यन्त प्रकाशयुक्त सूर्य के लिये (तत्,कर्त्त्वम्) वह कर्त्तव्य कर्म है जैसे यह सूर्य (गाः) किरणों को (उत्,आजत्) उत्कृष्टता से फेंकता (ब्रह्मणा) बड़े बल से (बलम्) आवरणकर्त्ता मेघ को (अभिनत्) विदीर्ण करता और जो (तमः) अन्धकार (अगूहत्) प्रकाश का आवरण करता उसको जो विदीर्ण करता और (स्वः) अन्तरिक्षस्थ सब पदार्थों को (व्यचक्षयत्) विशेष कर दर्शाता है और जिसके प्रताप से उक्त सब वस्तु (दृढा) दृढ (वीळिता) प्रशस्त (अव्रदन्त) कोमल होते तथा (अश्रथ्नन्) विमुक्त होते हैं, वैसे आप वर्त्ताव कीजिये ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सूर्य के तुल्य विद्या प्रकाश कर्मवाले अविद्यारूप अन्धकार के निवारक प्रमादी दुष्टों को शिथिल करते हुए श्रेष्ठ विद्वत्ता को ग्रहण करते हैं, वे जगत् के उपकारक होते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे विद्वन् यथा देवानां देवतमाय सूर्याय तत्कर्त्त्वं कर्मास्ति यथायं सूर्य्यो गा उदाजद्ब्रह्मणा बलमभिनद्यत्तमोऽगूहत्प्रकाशमगूहत्तद्यो व्यभिनत्स्वर्व्यचक्षयद्यस्य प्रतापेनोक्तानि वस्तूनि दृढा वीळिता अव्रदन्ताश्रथ्नन् तथा त्वं वर्त्तस्व ॥३॥

Word-Meaning: - (तत्) (देवानाम्) देदीप्यमानानां लोकानाम् (देवतमाय) अतिशयेन प्रकाशयुक्ताय (कर्त्त्वम्) कर्त्तव्यम् (अश्रथ्नन्) विमुक्तानि भवन्ति (दृढा) दृढानि (अव्रदन्त) मृदूनि भवन्ति (वीळिता) प्रशंसितानि (उत्) (गाः) किरणान् (आजत्) अजति प्रक्षिपति (अभिनत्) विदृणाति (ब्रह्मणा) बृहता बलेन (बलम्) आवरकं मेघम् (अगूहत्) संवृणोति (तमः) अन्धकारम् (वि) (अचक्षयत्) दर्शयति (स्वः) अन्तरिक्षस्थान् पदार्थान् ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये सूर्यवद्विद्याप्रकाशकर्माणोऽविद्यान्धकारनिवारकाः प्रमादिनो दुष्टान् शिथिलीकुर्वन्तो विद्वत्तमत्वं गृह्णन्ति ते जगदुपकारकाः सन्ति ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सूर्याप्रमाणे विद्याप्रकाशाचे कर्म करणारे, अविद्यारूपी अंधकाराचे निवारण करणारे, प्रमादी दुष्टांना शिथिल करणारे असून श्रेष्ठ विद्वत्ता ग्रहण करतात ते जगाचे उपकारक असतात. ॥ ३ ॥