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त्वया॑ व॒यं सु॒वृधा॑ ब्रह्मणस्पते स्पा॒र्हा वसु॑ मनु॒ष्या द॑दीमहि। या नो॑ दू॒रे त॒ळितो॒ या अरा॑तयो॒ऽभि सन्ति॑ ज॒म्भया॒ ता अ॑न॒प्नसः॑॥

English Transliteration

tvayā vayaṁ suvṛdhā brahmaṇas pate spārhā vasu manuṣyā dadīmahi | yā no dūre taḻito yā arātayo bhi santi jambhayā tā anapnasaḥ ||

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Pad Path

त्वया॑। व॒यम्। सु॒ऽवृधा॑। ब्र॒ह्म॒णः॒। प॒ते॒। स्पा॒र्हा। वसु॑। म॒नु॒ष्या॑। आ। द॒दी॒म॒हि॒। याः। नः॒। दू॒रे। त॒ळितः॑। याः। अरा॑तयः। अ॒भि। सन्ति॑। ज॒म्भय॑। ताः। अ॒न॒प्नसः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:23» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:30» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - (ब्रह्मणः) ब्रह्माण्ड वा राज्य की (पते) पालना करनेवाले (शिक्षक) (स्पार्हा) अभिकांक्षा के योग्य (सुवृधा) जो सुन्दर बढ़ावा देते उन (त्वया) तुम्हारे साथ (वयम्) हम (मनुष्याः) मनुष्य (वसु) विज्ञान वा धन (ददीमहि) देवें (नः) हमारे (दूरे) दूर देश में (याः) जो (तडितः) बिजली और (याः) जो (अनप्नसः) अविद्यमान कर्म वाली क्रिया (अरातयः) न देने की रीतियाँ (सन्ति) हैं (ताः) उनको (अभि,जम्भय) सब ओर से विनाशिये ॥९॥
Connotation: - यदि विद्वानों के उपदेश को न ग्रहण करें तो मनुष्य दानशील न हों, जो अकर्मठ अर्थात् कर्म नहीं करते कृपण पुरुष और स्त्रीजन हैं, वे बिजली के समान पुरुषार्थयुक्त करने चाहिये ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे ब्रह्मणस्पते शिक्षक स्पार्हा सुवृधा त्वया सह वयं मनुष्या वसु ददीमहि। नो दूरे यास्तळितो याश्चानप्नसोऽरातयः सन्ति ता अभिजम्भय ॥९॥

Word-Meaning: - (त्वया) सह (वयम्) (सुवृधा) यः सुष्ठु वर्द्धयति तेन (ब्रह्मणः) ब्रह्माण्डस्य राज्यस्य वा (पते) पालक (स्पार्हा) अभिकाङ्क्षितुमर्हेण (वसु) विज्ञानं धनं वा (मनुष्याः) मननशीलाः (ददीमहि) दद्याम (याः) (नः) अस्माकम् (दूरे) (तळितः) विद्युतः (याः) (अरातयः) अदानरीतयः (अभि) सर्वतः (सन्ति) (जम्भय) विनाशय। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः (ताः) (अनप्नसः) अविद्यमानमप्नः कर्म यासान्ताः क्रियाः ॥९॥
Connotation: - यदि विदुषामुपदेशं न गृह्णीयुस्तर्हि मानवा दानशीला न भवेयुः। येऽकर्मठाः कृपणाः पुरुषाः स्त्रियश्च सन्ति ता विद्युद्वत् पुरुषार्थनीयाः॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्वानांचा उपदेश न ऐकणारा माणूस दानशील नसतो. जे अकर्मठ अर्थात कर्म करीत नाहीत, अशा कृपण स्त्री-पुरुषांना विद्युल्लतेप्रमाणे क्रियाशील पुरुषार्थ करण्यास प्रवृत्त केले पाहिजे. ॥ ९ ॥