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तव॑ श्रि॒ये व्य॑जिहीत॒ पर्व॑तो॒ गवां॑ गो॒त्रमु॒दसृ॑जो॒ यद॑ङ्गिरः। इन्द्रे॑ण यु॒जा तम॑सा॒ परी॑वृतं॒ बृह॑स्पते॒ निर॒पामौ॑ब्जो अर्ण॒वम्॥

English Transliteration

tava śriye vy ajihīta parvato gavāṁ gotram udasṛjo yad aṅgiraḥ | indreṇa yujā tamasā parīvṛtam bṛhaspate nir apām aubjo arṇavam ||

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Pad Path

तव॑। श्रि॒ये। वि। अ॒जि॒ही॒त॒। पर्व॑तः। गवा॑म्। गो॒त्रम्। उ॒त्। असृ॑जः। यत्। अ॒ङ्गि॒रः॒। इन्द्रे॑ण। यु॒जा। तम॑सा। परि॑ऽवृतम्। बृह॑स्पते। निः। अ॒पाम्। औ॒ब्जः॒। अ॒र्ण॒वम्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:23» Mantra:18 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:32» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:18


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अङ्गिरः) प्राणप्रिय (बृहस्पते) बड़ों की पालना करनेवाले (तव) आपकी (श्रिये) लक्ष्मी के लिये (पर्वतः) मेघ (गवाम्) सूर्यमण्डल की किरणों के (यत्) जो (गोत्रम्) कुलको (वि,अजिहीत) विशेषता से प्राप्त होता वा (उदसृजः) किसी पदार्थ का त्याग करता सो आप (इन्द्रेण) सूर्य (युजा) युक्त (तमसा) अन्धकार से (परीवृतम्) सब प्रकार ढपा हुआ अग्नि जैसे हो वैसे (अपाम्) जलों के बीच (औब्जः) कोमलपन में प्रसिद्ध हूजिये तथा (अर्णवम्) समुद्र को (निः) निरन्तर प्रकट हूजिये ॥१८॥
Connotation: - जिस ईश्वर ने सूर्यादिक जगत् का निर्माण कर परस्पर सम्बन्ध किया, उसको प्राणप्रिय जानो ॥१८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अङ्गिरो बृहस्पते तव श्रिये पर्वतो गवां यद्गोत्रं व्यजिहीतोदसृजः स त्वमिन्द्रेण युजा तमस्य परीवृतमपामौब्जोर्णवं निर्जनय ॥१८॥

Word-Meaning: - (तव) (श्रिये) (वि) (अजिहीत) प्राप्नोति (पर्वतः) मेघः (गवाम्) किरणानाम् (गोत्रम्) कुलम् (उदसृजः) उत्सृजति त्यजति (यत्) (अङ्गिरः) प्राणप्रिय (इन्द्रेण) सूर्येण (युजा) युक्तेन (तमसा) अन्धकारेण (परीवृतम्) सर्वत आवृतम् (बृहस्पते) (निः) (अपाम्) जलानाम् (औब्जः) आर्जवे भव (अर्णवम्) समुद्रम् ॥१८॥
Connotation: - येन जगदीश्वरेण सूर्य्यादिकं जगन्निर्माय परस्परं सम्बन्धं कृतं तन्प्राणप्रियं विजानीत ॥१८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्या ईश्वराने सूर्य वगैरे जगाची निर्मिती करून परस्पर संबंध निर्माण केला आहे त्याला प्राणप्रिय समजा. ॥ १८ ॥