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त्वया॑ व॒यमु॑त्त॒मं धी॑महे॒ वयो॒ बृह॑स्पते॒ पप्रि॑णा॒ सस्नि॑ना यु॒जा। मा नो॑ दुः॒शंसो॑ अभिदि॒प्सुरी॑शत॒ प्र सु॒शंसा॑ म॒तिभि॑स्तारिषीमहि॥

English Transliteration

tvayā vayam uttamaṁ dhīmahe vayo bṛhaspate papriṇā sasninā yujā | mā no duḥśaṁso abhidipsur īśata pra suśaṁsā matibhis tāriṣīmahi ||

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Pad Path

त्वया॑। व॒यम्। उ॒त्ऽत॒मम्। धी॒म॒हे॒। वयः॑। बृह॑स्पते। पप्रि॑णा। सस्नि॑ना। यु॒जा। मा। नः॒। दुः॒ऽशंसः॑। अ॒भि॒ऽदि॒प्सुः। ई॒श॒त॒। प्र। सु॒ऽशंसाः॑। म॒तिऽभिः॑। ता॒रि॒षी॒म॒हि॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:23» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:30» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (बृहस्पते) विद्वान् (पप्रिणा) परिपूर्ण (सस्निना) शुद्ध पवित्र पदार्थ (युजा) युक्त (त्वया) तुम्हारे साथ वर्त्तमान (वयम्) हम लोग (उत्तमम्) श्रेष्ठ (वयः) जीवन को (धीमहे) धारण करें जिससे (अभिदिप्सुः) सब ओर से कपट की इच्छा करनेवाला (दुःशंसः) जिसकी दुष्ट कहावत प्रसिद्ध वह चोर (नः) हमलोगों का (मा,ईशत) ईश्वर न हो और (मतिभिः) प्रज्ञाओं के साथ वर्त्तमान (सुशंसाः) जिनकी सुन्दर स्तुति ऐसे हम लोग (प्र,तारिषीमहि) उत्तमता से तरें, सर्व विषयों के पार पहुँचें ॥१०॥
Connotation: - जो पूर्ण विद्यावाले योगी शुद्धात्मा जनों का संग करते हैं, वे दीर्घजीवी होते हैं, जो विद्वानों के सहचारी होते हैं, उनके लिये दुःख देने को कोई भी समर्थ नहीं हो सकते हैं ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे बृहस्पते पप्रिणा सस्निना युजा त्वया सह वर्त्तमाना वयमुत्तमं वयो धीमहे यतो नोऽभिदिप्सुर्दुःशंसो नोऽस्मान्मेशत मतिभिः सह वर्त्तमानाः सुशंसा वयं प्रतारिषीमहि ॥१०॥

Word-Meaning: - (त्वया) (वयम्) (उत्तमम्) श्रेष्ठम् (धीमहे) दधीमहि। अत्र छन्दस्युभयथेत्यार्द्धधातुकत्वं बहुलं छन्दसीति शपो लोपश्च (वयः) जीवनम् (बृहस्पते) विद्वन् (पप्रिणा) परिपूर्णेन (सस्निना) शुचिना (युजा) युक्तेन (मा) (नः) अस्मान् (दुःशंसः) दुष्टः शंसो यस्य स चोरः (अभिदिप्सुः) अभितो दम्भमिच्छुः (ईशत) समर्थो भवेत् (प्र) (सुशंसाः) शोभनः शंसः स्तुतिर्येषान्ते (मतिभिः) प्रज्ञाभिः (तारिषीमहि) तरेम। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम् ॥१०॥
Connotation: - ये पूर्णविद्यानां योगिनां शुद्धात्मनां सङ्गं कुर्वन्ति ते दीर्घजीविनो भवन्ति ये विद्वत्सहचरिता भवन्ति तेभ्यो दुःखं दातुं केऽपि न शक्नुवन्ति ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे पूर्ण विद्यावान, योगी, शुद्ध आत्मा असणाऱ्यांची संगती धरतात ते दीर्घजीवी होतात. जे विद्वानाचे सहकारी असतात त्यांना कुणीही दुःख देऊ शकत नाही. ॥ १० ॥