त्रिक॑द्रुकेषु महि॒षो यवा॑शिरं तुवि॒शुष्म॑स्तृ॒पत्सोम॑मपिब॒द्विष्णु॑नासु॒तं यथाव॑शत्। स ईं॑ ममाद॒ महि॒ कर्म॒ कर्त॑वे म॒हामु॒रुं सैनं॑ सश्चद्दे॒वो दे॒वं स॒त्यमिन्द्रं॑ स॒त्य इन्दुः॑॥
trikadrukeṣu mahiṣo yavāśiraṁ tuviśuṣmas tṛpat somam apibad viṣṇunā sutaṁ yathāvaśat | sa īm mamāda mahi karma kartave mahām uruṁ sainaṁ saścad devo devaṁ satyam indraṁ satya induḥ ||
त्रिऽक॑द्रुकेषु। म॒हि॒षः। यव॑ऽआशिरम्। तु॒वि॒ऽशुष्मः॑। तृ॒पत्। सोम॑म्। अ॒पि॒ब॒त्। विष्णु॑ना। सु॒तम्। यथा॑। अव॑शत्। सः। ई॒म्। म॒मा॒द॒। महि॑। कर्म॑। कर्त॑वे। म॒हाम्। उ॒रुम्। सः। ए॒न॒म्। स॒श्च॒त्। दे॒वः। दे॒वम्। स॒त्यम्। इन्द्र॑म्। स॒त्यः। इन्दुः॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब चार चावाले बाईसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में सूर्य्य का विषय कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ सूर्य्यविषयमाह।
यो तुविशुष्मो महिषस्तृपत् त्रिकद्रुकेषु यवाशिरं विष्णुना सुतं सोमं यथाऽपिबदवशच्च स ईं महि कर्म कर्त्तवे ममाद यः सत्य इन्दुर्देव एनं महामुरुं सत्यं देवमिन्द्रं सश्चत्स पूज्यो भवति ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात सूर्य, विद्युत, ईश्वर व जीवाच्या गुणकर्मांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणावे.