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व॒यम॑ग्ने॒ अर्व॑ता वा सु॒वीर्यं॒ ब्रह्म॑णा वा चितयेमा॒ जनाँ॒ अति॑। अ॒स्माकं॑ द्यु॒म्नमधि॒ पञ्च॑ कृ॒ष्टिषू॒च्चा स्व१॒॑र्ण शु॑शुचीत दु॒ष्टर॑म्॥

English Transliteration

vayam agne arvatā vā suvīryam brahmaṇā vā citayemā janām̐ ati | asmākaṁ dyumnam adhi pañca kṛṣṭiṣūccā svar ṇa śuśucīta duṣṭaram ||

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Pad Path

व॒यम्। अ॒ग्ने॒। अर्व॑ता। वा। सु॒ऽवीर्य॑म्। ब्रह्म॑णा। वा। चि॒त॒ये॒म॒। जना॑न्। अति॑। अ॒स्माक॑म्। द्यु॒म्नम्। अधि॑। पञ्च॑। कृ॒ष्टिषु॑। उ॒च्चा। स्वः॑। न। शु॒शु॒ची॒त॒। दु॒स्तर॑म्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:2» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:21» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान विद्वान् ! आप (अर्वता) अश्वादि युक्त सेना समूह (वा) अथवा (ब्रह्मणा) धन से (दुष्टरम्) दुःख के साथ उल्लंघन करने योग्य (सुवीर्यम्) उत्तम पराक्रम और (जनान्) जनों को जतलाते हो वैसे (वयम्) हम लोग (अतिचितयेम) अत्यन्त चिन्ता से स्मरण कराते हैं। हे मनुष्यो ! जैसे (अस्माकम्) हम लोगों के (वा) अथवा विद्बानों के (स्वः) सुख के (न) समान (द्युम्नम्) यश को (कृष्टिषु) मनुष्यों में विद्वान् प्रकाशित करे वैसे इसको तुम लोग (शुशुचीत) शुद्ध करो जैसे हमारे (पञ्च) पाँच (उच्चा) उत्तम (अधि) अधिकार ऊपर वर्त्तमान हैं, वैसे तुम्हारे भी हों ॥१०॥
Connotation: - विद्वानों के सङ्गी ज्ञान चाहनेवाले पुरुषों को चाहिये कि आप्त शिष्ट जनों से जैसा विज्ञान प्राप्त हो, वैसा ही औरों को देवें। जैसे हम लोगों के ब्रह्मचर्य विद्या बल शील पुरुषार्थ बढ़ते हैं, वैसे सबके बढ़ें, ऐसी हम लोग इच्छा करें ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने यथा त्वमर्वता ब्रह्मणा वा दुष्टरं सुवीर्यमन्यान् जनान् ज्ञापयेस्तथा वयमति चितयेम। हे मनुष्या यथाऽस्माकं विदुषो वा स्वर्ण द्युम्नं कृष्टिषु प्रकाशयेत्तथैतद्यूयं शुशुचीत यथाऽस्माकं पञ्चोच्चाऽधिवर्त्तन्ते तथा युष्माकमपि सन्तु ॥१०॥

Word-Meaning: - (वयम्) (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान विद्वन् (अर्वता) अश्वादियुक्तेन सैन्येन (वा) (सुवीर्यम्) सुष्ठु पराक्रमम् (ब्रह्मणा) धनेन (वा) (चितयेम) ज्ञापयेम। अत्रान्येषामपीति दीर्घः (जनान्) विदुषः (अति) अत्यन्तम् (अस्माकम्) (द्युम्नम्) यशः (अधि) उपरि (पञ्च) (कृष्टिषु) मनुष्येषु (उच्चा) उच्चानि उत्कृष्टानि (स्वः) आदित्यः (न) इव (शुशुचीत) शुन्धत (दुष्टरम्) दुःखेन तरितुमुल्लङ्घितुं योग्यम् ॥१०॥
Connotation: - विद्वत्सङ्गिभिर्जिज्ञासुभिराप्तेभ्यो यादृशं विज्ञानं प्राप्येत तादृशमेवाऽन्येभ्यो देयम्। यथाऽस्माकं ब्रह्मचर्यविद्याबलशीलपुरुषार्था वर्द्धन्ते तथा सर्वेषां वर्द्धेरन्निति वयमिच्छेम ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्वानांच्या संगतीत असलेल्या जिज्ञासू पुरुषांना आप्त शिष्ट लोकांकडून जे विज्ञान प्राप्त होते ते लोकांना द्यावे. जसे आमचे ब्रह्मचर्य, विद्या, बल, शील, पुरुषार्थ वाढते तसे सर्वांचे वाढावे, अशी आम्ही इच्छा बाळगावी. ॥ १० ॥