हरी॒ नु कं॒ रथ॒ इन्द्र॑स्य योजमा॒यै सू॒क्तेन॒ वच॑सा॒ नवे॑न। मो षु त्वामत्र॑ ब॒हवो॒ हि विप्रा॒ नि री॑रम॒न्यज॑मानासो अ॒न्ये॥
harī nu kaṁ ratha indrasya yojam āyai sūktena vacasā navena | mo ṣu tvām atra bahavo hi viprā ni rīraman yajamānāso anye ||
हरी॒ इति॑। नु। क॒म्। रथे॑। इन्द्र॑स्य। यो॒ज॒म्। आ॒ऽयै। सू॒क्तेन॑। वच॑सा। नवे॑न। मो इति॑। सु। त्वाम्। अत्र॑। ब॒हवः॑। हि। विप्राः॑। नि। री॒र॒म॒न्। यज॑मानासः। अ॒न्ये॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे विद्वन् य इन्द्रस्य रथे हरी नु कं साध्नुवन्ति यानहमत्र सूक्तेन वचसा नवेनायै योजमत्र बहवो विप्रास्त्वां हि सुनिरीरमन्। अन्ये यजमानासश्चात्र विपरीता मो रीरमन् ॥३॥
MATA SAVITA JOSHI
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