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स प्रा॒चीना॒न्पर्व॑तान्दृंह॒दोज॑साधरा॒चीन॑मकृणोद॒पामपः॑। अधा॑रयत्पृथि॒वीं वि॒श्वधा॑यस॒मस्त॑भ्नान्मा॒यया॒ द्याम॑व॒स्रसः॑॥

English Transliteration

sa prācīnān parvatān dṛṁhad ojasādharācīnam akṛṇod apām apaḥ | adhārayat pṛthivīṁ viśvadhāyasam astabhnān māyayā dyām avasrasaḥ ||

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Pad Path

सः। प्रा॒चीना॑न्। पर्व॑तान्। दृं॒ह॒त्। ओज॑सा। अ॒ध॒रा॒चीन॑म्। अ॒कृ॒णो॒त्। अ॒पाम्। अपः॑। अधा॑रयत्। पृ॒थि॒वीम्। वि॒श्वऽधा॑यसम्। अस्त॑भ्नात्। मा॒यया॑। द्याम्। अ॒व॒ऽस्रसः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:17» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:19» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - (सः) वह परमेश्वर जैसे (प्राचीनान्) प्राचीन अर्थात् पहिले से वर्त्तमान (पर्वतान्) पर्वतों के समान मेघों को (ओजसा) बल के साथ (दृंहत्) धारण करता (अधराचीनम्) और जो नीचे को प्राप्त होता उसको बनाकर (अपाम्) अन्तरिक्ष के (अपः) जलों को (अकृणोत्) सिद्ध करता है (विश्वधायसम्) विश्वके धारण करने को समर्थ (पृथिवीम्) पृथिवी को (अधारयत्) धारण करता जो (मायया) प्रज्ञा से (द्याम्) प्रकाश को (अस्तभ्नात्) रोकता वा (अवस्रसः) विस्तारता है, वैसे समस्त विश्व को धारण करता है ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य अपने निकट के लोकों को धारण करता, वैसे परमेश्वर सूर्य्यादि समस्त जगत् को धारण करता है ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

स परमेश्वरो यथा प्राचीनान्पर्वतानोजसा दृंहदधराचीनं कृत्वाऽपामपोऽकृणोद्विश्वधायसं पृथिवीमधारयन्मायया द्यामस्तभ्नादवस्रसस्तथा सकलं विश्वं धरति ॥५॥

Word-Meaning: - (सः) (प्राचीनान्) पूर्वतो वर्त्तमानान् (पर्वतान्) पर्वतानिव मेघान् (दृंहत्) दृंहति धरति (ओजसा) बलेन (अधराचीनम्) योऽधोऽञ्चति तम् (अकृणोत्) करोति (अपाम्) अन्तरिक्षस्य (अपः) जलानि (अधारयत्) धारयति (पृथिवीम्) (विश्वधायसम्) विश्वस्य धारणसमर्थम् (अस्तभ्नात्) स्तभ्नाति (मायया) प्रज्ञया (द्याम्) प्रकाशम् (अवस्रसः) अवसारयति ॥५
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यः सन्निहिताँल्लोकान्धरति तथा परमेश्वरः सूर्याद्यखिलं जगद्धत्ते ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य आपल्या जवळच्या गोलांना धारण करतो तसा परमेश्वर सूर्य इत्यादी संपूर्ण जगाला धारण करतो. ॥ ५ ॥