पु॒रा सं॑बा॒धाद॒भ्या व॑वृत्स्व नो धे॒नुर्न व॒त्सं यव॑सस्य पि॒प्युषी॑। स॒कृत्सु ते॑ सुम॒तिभिः॑ शतक्रतो॒ सं पत्नी॑भि॒र्न वृष॑णो नसीमहि॥
purā sambādhād abhy ā vavṛtsva no dhenur na vatsaṁ yavasasya pipyuṣī | sakṛt su te sumatibhiḥ śatakrato sam patnībhir na vṛṣaṇo nasīmahi ||
पु॒रा। स॒म्ऽबा॒धात्। अ॒भि। आ। व॒वृ॒त्स्व॒। नः॒। धे॒नुः। न। व॒त्सम्। यव॑सस्य। पि॒प्युषी॑। स॒कृत्। सु। ते॒। सु॒म॒तिऽभिः॑। श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो। सम्। पत्नी॑भिः। न। वृष॑णः। न॒सी॒म॒हि॒॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे शतक्रतो त्वं यवसस्य वत्सं पिप्युषी धेनुर्न सुमतिभिः पत्नीभिर्वृषणो न ते तव सम्बाधात्पुरा नोऽस्मान् त्वमभ्याववृत्स्व यतो वयं सकृत्सु सन्नसीमहि ॥८॥
MATA SAVITA JOSHI
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