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सोद॑ञ्चं॒ सिन्धु॑मरिणान्महि॒त्वा वज्रे॒णान॑ उ॒षसः॒ सं पि॑पेष। अ॒ज॒वसो॑ ज॒विनी॑भिर्विवृ॒श्चन्त्सोम॑स्य॒ ता मद॒ इन्द्र॑श्चकार॥

English Transliteration

sodañcaṁ sindhum ariṇān mahitvā vajreṇāna uṣasaḥ sam pipeṣa | ajavaso javinībhir vivṛścan somasya tā mada indraś cakāra ||

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Pad Path

सः। उद॑ञ्चम्। सिन्धु॑म्। अ॒रि॒णा॒त्। म॒हि॒त्वा। वज्रे॑ण। अनः॑। उ॒षसः॑। सम्। पि॒पे॒ष॒। अ॒ज॒वसः॑। ज॒विनी॑भिः। वि॒ऽवृ॒श्चन्। सोम॑स्य। ता। मदे॑। इन्द्रः॑। च॒का॒र॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:15» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:16» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सूर्य के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (इन्द्रः) सब पदार्थों को अपनी किरणों से छिन्न-भिन्न करनेवाला सूर्य (महित्वा) महत्त्व से (वज्रेण) अपने किरण रूपी वज्र से (उदञ्चम्) ऊपर को प्राप्त होते हुए (सिन्धुम्) समुद्र को (अरिणात्) गमन करता वा उच्छिन्न करता (उषसः) प्रभात समय से लेकर (संपिपेष) अच्छे प्रकार पीसता अर्थात् अपने आतप से समुद्र के जलको कण-कणकर शोखता (अजवसः) वेगरहित भी (जविनीभिः) वेगवती क्रियाओं से पदार्थों को (विवृश्चन्) छिन्न-भिन्न करत हुआ (सोमस्य) ऐश्वर्ययुक्त संसार के (मदे) आनन्द के निमित्त (ता) उन कामों को (चकार) करता है (सः) वह तुम लोगों को जानने योग्य है ॥६॥
Connotation: - जैसे सूर्य महत्त्व से अपने प्रकाश से जल को ऊपर पहुँचाता, रात्रि को विनाशता अतिवेग और अपनी चालों से अद्भुत कामों को करता है, वैसे हम लोगों को भी आरम्भ करना चाहिये ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सूर्यविषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या य इन्द्रः सूर्यो महित्वा वज्रेणोदञ्चं सिन्धुमरिणादुषसो नः संपिपेषाऽजवसो जविनीभिः पदार्थान् विवृश्चन् सोमस्य मदे ता चकार स युष्माभिर्वेद्यः ॥६॥

Word-Meaning: - (सः) (उदञ्चम्) ऊर्ध्वं प्राप्नुवन्तम् (सिन्धुम्) समुद्रम् (अरिणात्) रिणाति प्राप्नोति (महित्वा) महत्वेन (वज्रेण) किरणेन वज्रेण (अनः) शकटम् (उषसः) प्रभातात् (सम्) (पिपेष) पिनष्टि (अजवसः) वेगरहितः (जवनीभिः) वेगवतीक्रियाभिः (विवृश्चन्) विविधतया छिन्दन् (सोमस्य) ऐश्वर्ययुक्तस्य संसारस्य (ता) तानि (मदे) आनन्दे (इन्द्रः) (चकार) करोति ॥६॥
Connotation: - यथा सूर्यो महत्त्वेन स्वप्रकाशेन जलमुपरि गमयति रात्रिं नाशयत्यतिवेगैर्गमनैरद्भुतानि कर्माणि करोति तथाऽस्माभिरप्यनुष्ठेयम् ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसा सूर्य प्रचंड शक्तीने जल वर पोचवितो, रात्रीचा नाश करतो, अति वेगाने गमन करून अद्भुत कार्ये करतो, तसे आम्हीही अनुष्ठान केले पाहिजे. ॥ ६ ॥