प्र घा॒ न्व॑स्य मह॒तो म॒हानि॑ स॒त्या स॒त्यस्य॒ कर॑णानि वोचम्। त्रिक॑द्रुकेष्वपिबत्सु॒तस्या॒स्य मदे॒ अहि॒मिन्द्रो॑ जघान॥
pra ghā nv asya mahato mahāni satyā satyasya karaṇāni vocam | trikadrukeṣv apibat sutasyāsya made ahim indro jaghāna ||
प्र। घ॒। नु। अ॒स्य॒। म॒ह॒तः। म॒हानि॑। स॒त्या। स॒त्यस्य॑। कर॑णानि। वो॒च॒म्। त्रिऽक॑द्रुकेषु। अ॒पि॒ब॒त्। सु॒तस्य॑। अ॒स्य। मदे॑। अहि॑म्। इन्द्रः॑। ज॒घा॒न॒॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब दश चावाले पन्द्रहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वान्, सूर्य और परमेश्वर के विषय को कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ विद्युत्सूर्यपरमेश्वरविषयमाह।
हे मनुष्या यथेन्द्रः सुतस्यास्य त्रिकद्रुकेष्वपिबन्मदेऽहिं जघान तदिदमस्य महतः सत्यस्य जगदीश्वरस्य सत्या महानि करणानि घाहं नु प्रवोचं तथा यूयमवोचत ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात विद्वान, सूर्य, परमेश्वर, राज्य व दातृकर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.