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प्र घा॒ न्व॑स्य मह॒तो म॒हानि॑ स॒त्या स॒त्यस्य॒ कर॑णानि वोचम्। त्रिक॑द्रुकेष्वपिबत्सु॒तस्या॒स्य मदे॒ अहि॒मिन्द्रो॑ जघान॥

English Transliteration

pra ghā nv asya mahato mahāni satyā satyasya karaṇāni vocam | trikadrukeṣv apibat sutasyāsya made ahim indro jaghāna ||

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Pad Path

प्र। घ॒। नु। अ॒स्य॒। म॒ह॒तः। म॒हानि॑। स॒त्या। स॒त्यस्य॑। कर॑णानि। वो॒च॒म्। त्रिऽक॑द्रुकेषु। अ॒पि॒ब॒त्। सु॒तस्य॑। अ॒स्य। मदे॑। अहि॑म्। इन्द्रः॑। ज॒घा॒न॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:15» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:15» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब दश चावाले पन्द्रहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वान्, सूर्य और परमेश्वर के विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (इन्द्रः) सूर्य (सुतस्य) सम्पादित किये हुए (अस्य) सोमादि ओषधि के रस को (त्रिकद्रुकेषु) तीन प्रकार की विशेष गतियों से युक्त कर्मों में (अपिबत्) पीता है और (मदे) हर्ष के निमित्त (अहिम्) मेघ को (जघान) मारता है, इस कर्म को अथवा (अस्य) इस (महतः) पूज्य व व्यापक (सत्यस्य) नाशरहित जगदीश्वर के (सत्या) सत्य अविनाशी (महानि) प्रशंसनीय (करणानि) साधन वा कर्मों को (घ) ही मैं (नु) शीघ्र (प्रवोचम्) प्रकर्षता से कहता हूँ, वैसे तुम लोग भी कहो ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य जैसे सूर्य किरणों से सबके रस को अपने प्रकाश से उन्नत करता वा शोधता है, वैसे ओषधियों के रस को जो कि रोगनिवारण करने से आनन्द देनेवाला है, उसको सेवते वा परमेश्वर के सत्यगुण, कर्म, स्वभाव और साधनों के अनुकूल कर्मों को करते हैं, वे ही शीघ्र सुख को प्राप्त होते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्युत्सूर्यपरमेश्वरविषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यथेन्द्रः सुतस्यास्य त्रिकद्रुकेष्वपिबन्मदेऽहिं जघान तदिदमस्य महतः सत्यस्य जगदीश्वरस्य सत्या महानि करणानि घाहं नु प्रवोचं तथा यूयमवोचत ॥१॥

Word-Meaning: - (प्र) प्रकृष्टतया (घ) एव। अत्र चि तुनुघेति दीर्घः (नु) सद्यः (अस्य) जगदीश्वरस्य (महतः) पूज्यस्य व्यापकस्य वा (महानि) महान्ति पूज्यानि (सत्या) सत्यान्यविनश्वराणि (सत्यस्य) नाशरहितस्य (करणानि) साधनानि कर्माणि वा (वोचम्) वच्मि (त्रिकद्रुकेषु) त्रिभिः कद्रुकैः विकलनैर्युक्तेषु कर्मषु (अपिबत्) पिबति (सुतस्य) सम्पादितस्य (अस्य) सोमाद्योषधिरसस्य (मदे) हर्षे (अहिम्) मेघम् (इन्द्रः) सूर्यः (जघान) हन्ति ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः यथा सूर्यः किरणैः सर्वस्य रसं स्वप्रकाशेनोन्नयति शोधयति वा तथौषधिरसं रोगनिवारकत्वेनाऽऽनन्दप्रदं सेवन्ते परमेश्वरस्य सत्यगुणकर्मस्वभावसाधनानुकूलानि कर्माणि कुर्वन्ति त एव सद्यः सुखमश्नुवते ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वान, सूर्य, परमेश्वर, राज्य व दातृकर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य किरणांनी सर्व रसांना आपल्या प्रकाशाने संस्कारित करतो तसे जे रोगनिवारण करणाऱ्या व आनंद देणाऱ्या औषधाच्या रसाचे प्राशन करतात व परमेश्वराच्या सत्य, गुण, कर्म स्वभावानुसार साधनानुकूल कर्म करतात ते ताबडतोब सुख प्राप्त करतात. ॥ १ ॥