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अध्व॑र्यवो॒ यः श॒तमा स॒हस्रं॒ भूम्या॑ उ॒पस्थेऽव॑पज्जघ॒न्वान्। कुत्स॑स्या॒योर॑तिथि॒ग्वस्य॑ वी॒रान्न्यावृ॑ण॒ग्भर॑ता॒ सोम॑मस्मै॥

English Transliteration

adhvaryavo yaḥ śatam ā sahasram bhūmyā upasthe vapaj jaghanvān | kutsasyāyor atithigvasya vīrān ny āvṛṇag bharatā somam asmai ||

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Pad Path

अध्व॑र्यवः। यः। श॒तम्। आ। स॒हस्र॑म्। भूम्याः॑। उ॒पऽस्थे॑। अव॑पत्। ज॒घ॒न्वान्। कुत्स॑स्य। आ॒योः। अ॒ति॒थि॒ऽग्वस्य॑। वी॒रान्। नि। अवृ॑णक्। भर॑त॒। सोम॑म्। अ॒स्मै॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:14» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:14» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अध्वर्यवः) युद्ध यज्ञरूप की सिद्धि करनेवाले जनो तुम (यः) जो सूर्य के समान (भूम्याः) भूमि के (उपस्थे) ऊपर (शतम्) सैकड़ों वा (सहस्रम्) सहस्रों वीरों को (आ, अवपत्) बोता अर्थात् गिरा देता दुष्टों को (जघन्वान्) मारता वा (अतिथिग्वस्य) अतिथियों को प्राप्त होनेवाले (आयोः) और प्राप्त हुए (कुत्सस्य) बाण आदि फेंकनेवाले प्रजापति के (वीरान्) शत्रु बलों से व्याप्त होते वीरों को (नि, अवृणक्) निरन्तर वर्जता है (अस्मै) इसके लिये (सोमम्) ऐश्वर्य को (भरत) पुष्ट करो ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो जैसे रूप से छिन्न भिन्न हुआ मेघ असंख्य बिन्दुओं को वर्षाता है, वैसे जो शत्रु सेना पर शस्त्रों को वर्षावे, वह विजय को प्राप्त होवे ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अध्वर्ययो यूयं यः सूर्यइव भूम्या उपस्थे शतं सहस्रभावपद्दुष्टाञ्जघन्वानतिथिग्वस्यायोः कुत्सस्य वीरान्यवृणगस्मै सोमं भरत ॥७॥

Word-Meaning: - (अध्वर्यवः) (यः) (शतम्) (आ) (सहस्रम्) असङ्ख्यम् (भूम्याः) (उपस्थे) (अवपत्) वपति (जघन्वान्) हन्ति (कुत्सस्य) अवक्षेप्तुः (आयोः) प्राप्तस्य (अतिथिग्वस्य) अतिथीन् गच्छतः (वीरान्) शत्रुबलव्यापकान् (नि) नितराम् (अवृणक्) वृणक्ति (भरत) पुष्णीत। अत्रापि दीर्घः (सोमम्) (अस्मै) ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यथा सूर्येण हतो मेघोऽसङ्ख्यान्बिन्दून्वर्षति तथा ये शत्रुसैन्यस्योपरि शस्त्रास्त्राणि वर्षयेयुस्ते विजयमाप्नुयुः ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसा सूर्यापासून छिन्नभिन्न झालेला मेघ असंख्य बिंदूंचा वर्षाव करतो, तसे जो शत्रूसेनेवर शस्त्रांचा वर्षाव करतो त्याला विजय प्राप्त होतो. ॥ ७ ॥