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अ॒स्मभ्यं॒ तद्व॑सो दा॒नाय॒ राधः॒ सम॑र्थयस्व ब॒हु ते॑ वस॒व्य॑म्। इन्द्र॒ यच्चि॒त्रं श्र॑व॒स्या अनु॒ द्यून्बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥

English Transliteration

asmabhyaṁ tad vaso dānāya rādhaḥ sam arthayasva bahu te vasavyam | indra yac citraṁ śravasyā anu dyūn bṛhad vadema vidathe suvīrāḥ ||

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Pad Path

अ॒स्मभ्य॑म्। तत्। व॒सो॒ इति॑। दा॒नाय॑। राधः॑। सम्। अ॒र्थ॒य॒स्व॒। ब॒हु। ते॒। व॒स॒व्य॑म्। इन्द्र॑। यत्। चि॒त्रम्। श्र॒व॒स्याः। अनु॑। द्यून्। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒ऽवीराः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:14» Mantra:12 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:14» Mantra:6 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ईश्वर विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (वसो) धन देनेवाले (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (सुवीराः) सुन्दरवीरोंवाले हम लोग जो (ते) तुम्हारा (बहु) बहुत (चित्रम्) अद्भुत (वसव्यम्) पृथिवी आदि वसुओं से सिद्ध हुए (बृहत्) बहुत (राधः) समृद्धि करनेवाले धन को (श्रवस्याः) अन्नों के लिये हित करनेवाली पृथिवी के बीच (अनुद्यून्) प्रतिदिन (विदथे) विज्ञानरूपी संग्राम यज्ञ में (वदेम) कहें उसको हमारे लिये देने को आप (समर्थयस्व) समर्थ करो ॥१२॥
Connotation: - सज्जनों का धन औरों के सुख के लिये और दुष्टों का धन औरों के दुःख के लिये होता है। जो धन और ऐश्वर्यों की उन्नति के लिये सर्वदा प्रयत्न करते हैं, वे पुष्कल वैभव पाते हैं ॥१२॥ इस सूक्त में सोम बिजुली राजप्रजा और क्रियाकौशलता के प्रयोजनों के वर्णन से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥ यह चौदहवाँ सूक्त और चौदहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेश्वरविषयमाह।

Anvay:

हे वसो इन्द्र सुवीरा वयं यत्ते बहुचित्रं वसव्यं बृहद्राधः श्रवस्या अनुद्यून् विदथे वदेम तदस्मभ्यं दानाय त्वं समर्थयस्व ॥१२॥

Word-Meaning: - (अस्मभ्यम्) (तत्) (वसो) वसुप्रद (दानाय) अन्येषां सत्काराय (राधः) समृद्धिकरं धनम् (सम्) सम्यक् (अर्थयस्व) अर्थं कुरुष्व (बहु) (ते) तव (वसव्यम्) वसुषु पृथिव्यादिषु भवम् (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (यत्) (चित्रम्) अद्भुतम् (श्रवस्याः) श्रवेभ्योऽन्नेभ्यो हिताय पृथिव्या मध्ये (अनु) (द्यून्) प्रतिदिनम् (बृहत्) महत् (वदेम) उपदिशेम (विदथे) विज्ञानसङ्ग्राममये यज्ञे (सुवीराः) ॥१२॥
Connotation: - सज्जनानां धनमन्येषां सुखाय दुष्टानां च दुःखाय भवति ये धनैश्वर्योन्नतये सर्वदा प्रयतन्ते ते पुष्कलं वैभवं प्राप्नुवन्तीति ॥१२॥ अत्र सोमविद्युद्राजप्रजाक्रियाकौशलप्रयोजनवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥इति चतुर्दशं सूक्तं चतुर्दशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सज्जनांचे धन इतरांच्या सुखासाठी व दुष्टांचे धन इतरांच्या दुःखासाठी असते. जे धन व ऐश्वर्याच्या उन्नतीसाठी सदैव प्रयत्न करतात ते पुष्कळ वैभव प्राप्त करतात. ॥ १२ ॥