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येने॒मा विश्वा॒ च्यव॑ना कृ॒तानि॒ यो दासं॒ वर्ण॒मध॑रं॒ गुहाकः॑। श्व॒घ्नीव॒ यो जि॑गी॒वाँल्ल॒क्षमाद॑द॒र्यः पु॒ष्टानि॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑॥

English Transliteration

yenemā viśvā cyavanā kṛtāni yo dāsaṁ varṇam adharaṁ guhākaḥ | śvaghnīva yo jigīvām̐l lakṣam ādad aryaḥ puṣṭāni sa janāsa indraḥ ||

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Pad Path

येन॑। इ॒मा। विश्वा॑। च्यव॑ना। कृ॒तानि॑। यः। दास॑म्। वर्ण॑म्। अध॑रम्। गुहा॑। अक॒रित्यकः॑। श्व॒घ्नीऽइ॑व। यः। जि॒गी॒वान्। ल॒क्षम्। आद॑त्। अ॒र्यः। पु॒ष्टानि॑। सः। ज॒ना॒सः॒। इन्द्रः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:12» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:7» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ईश्वरविषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (जनासः) मनुष्यो ! (येन) जिस ईश्वर ने (इमा) ये (विश्वा) समस्त (च्यवना) प्राप्त हुए लोक (पुष्टानि) दृढ़ (कृतानि) किये (यः) जो (गुहा) हृदयाकाश में (वर्णम्) रूप को (अधरम्) उस हृदय के नीचे (दासम्) देने योग्य (अकः) करता है और (यः) जो (श्वघ्नीइव) कुत्तों का दण्ड देनेवाली के समान (जिगीवान्) जयशील (लक्षम्) लक्ष को (आदत्) ग्रहण करता है (सः) वह (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (अर्य्यः) ईश्वर है यह जानना चाहिये ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो ईश्वर कारण से विविध प्रकार के लोकों और पदार्थों को रचता और जो सब कर्मों को लक्ष सा रखता है, वह सबको उपासना करने योग्य है ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेश्वरविषयमाह।

Anvay:

हे जनासो येनेश्वरेणेमा विश्वा च्यवना पुष्टानि कृतानि यो गुहा वर्णमधरं दासमको यः श्वघ्नीव जिगीवान् लक्षमादत् स इन्द्रोऽर्यो बोध्यः ॥४॥

Word-Meaning: - (येन) ईश्वरेण (इमा) इमानि (विश्वा) सर्वाणि भुवनानि (च्यवना) प्राप्तानि (कृतानि) उत्पादितानि (यः) (दासम्) दातुं योग्यम् (वर्णम्) रूपम् (अधरम्) निम्नम् (गुहा) गुहायाम् (अक:) करोति (श्वघ्नीव) या शुनो हन्ति तद्वत् (यः) (जिगीवान्) जयशीलः (लक्षम्) लक्षितुं योग्यम् (आदत्) आदत्ते (अर्य्यः) ईश्वरः। अर्य इति ईश्वरनाम०। निघं० २। २२ (पुष्टानि) दृढानि (सः) (जनासः) (इन्द्रः) ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। य ईश्वरः कारणाद्विविधान् लोकान् पदार्थांश्च निर्मिमीते यः सर्वेषां कर्माणि लक्षीभूतानि रक्षति स सर्वैरुपासनीयः ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो ईश्वर कारणा (प्रकृती)पासून विविध प्रकारच्या गोलांना उत्पन्न करतो व पदार्थांना उत्पन्न करतो, जो सर्वांच्या कर्मांना पाहतो, तोच उपासना करण्यायोग्य आहे. ॥ ४ ॥