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इन्द्रो॑ म॒हां सिन्धु॑मा॒शया॑नं माया॒विनं॑ वृ॒त्रम॑स्फुर॒न्निः। अरे॑जेतां॒ रोद॑सी भिया॒ने कनि॑क्रदतो॒ वृष्णो॑ अस्य॒ वज्रा॑त्॥

English Transliteration

indro mahāṁ sindhum āśayānam māyāvinaṁ vṛtram asphuran niḥ | arejetāṁ rodasī bhiyāne kanikradato vṛṣṇo asya vajrāt ||

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Pad Path

इन्द्रः॑। म॒हाम्। सिन्धु॑म्। आ॒ऽशया॑नम्। मा॒या॒ऽविन॑म्। वृ॒त्रम्। अ॒स्फु॒र॒त्। निः। अरे॑जेताम्। रोद॑सी॒ इति॑। भि॒या॒ने इति॑। कनि॑क्रदतः। वृष्णः॑। अ॒स्य॒। वज्रा॑त्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:11» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:4» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे सभापति राजन् ! जैसे (इन्द्र) सूर्यलोक (महाम्) अत्यन्त बड़े (सिन्धुम्) अन्तरिक्ष समुद्र को (आशयानम्) प्राप्त (वृत्रम्) मेघ को (नि, अस्फुरत्) निरन्तर बढ़ाता है वा जैसे (अस्य) इस (वृष्णः) वर्षनेवाले मेघ की (वज्रात्) गिरी हुई बिजुली के शब्द से (भियाने) डरपे हुए से (रोदसी) आकाश और पृथिवी (अरेजेताम्) कंपते और (कनक्रदतः) शब्द करते हैं वैसे आप (मायाविनम्) मायावी दुष्ट बुद्धि पुरुष को विदारो, दुष्टों को कंपाओ और रुलाओ ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजपुरुषो ! जैसे सूर्य अपनी किरणों से समुद्र के जल को मेघमण्डल को पहुँचा और उसे वर्षाकर प्रजाजनों को सुखी करता है, वैसे आप विद्या से अच्छे प्रकार उन्नति-संयुक्त प्रजा कर उसे सुखी करें। जैसे बिजुली के श्रवण से सब डरते हैं, वैसे न्यायाचरण के उपदेश से दुष्टाचरण से सब डरें ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे सभेश राजन् यथेन्द्रः सूर्य्यः महां सिन्धुमाशयानं वृत्रं निरस्फुरत्, यथाऽस्य वृष्णो वज्राद्भियाने इव रोदसी अरेजेतां कनिक्रदतस्तथा त्वं मायाविनं भिन्धि दुष्टान् कम्पयस्व रोदय च ॥९॥

Word-Meaning: - (इन्द्रः) सूर्यः (महाम्) महत्तमम् (सिन्धुम्) समुद्रम् (आशयानम्) आस्थितम् (मायाविनम्) दुष्टप्रज्ञम् (वृत्रम्) मेघम् (अस्फुरत्) वर्द्धयति (निः) नितराम् (अरेजेताम्) कम्पेते (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (भियाने) भयं प्राप्ताविव (कनिक्रदतः) शब्दयतः (वृष्णः) वर्षकस्य (अस्य) वर्त्तमानस्य (वज्रात्) विद्युत्पातशब्दात् ॥९॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजपुरुषा यथा सूर्यः स्वकिरणैः सिन्धुजलं मेघमण्डलं गमयित्वा वर्षयित्वा च प्रजाः सुखयति तथा भवन्तो विद्यया समुन्नताः प्रजाः सम्पाद्य सुखयेयुः। यथा विद्युच्छब्दश्रवणात् सर्वे बिभ्यति तथा न्यायाचरणोपदेशाद् दुष्टाचारात्सर्वे बिभ्यतु ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजपुरुषांनो! जसा सूर्य आपल्या किरणांनी समुद्रातील जलाला मेघमंडलात पोचवितो, त्याचा वर्षाव करून प्रजेला सुखी करतो, तसे तुम्ही विद्येने चांगल्या प्रकारे उन्नती करून प्रजा सुखी करावी. जसे विद्युल्लतेचा कडकडाट ऐकून सर्वजण घाबरतात. तसे न्यायाचरणाच्या उपदेशामुळे सर्वांनी दुष्टाचरण करण्यास भ्यावे. ॥ ९ ॥