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स्तवा॒ नु त॑ इन्द्र पू॒र्व्या म॒हान्यु॒त स्त॑वाम॒ नूत॑ना कृ॒तानि॑। स्तवा॒ वज्रं॑ बा॒ह्वोरु॒शन्तं॒ स्तवा॒ हरी॒ सूर्य॑स्य के॒तू॥

English Transliteration

stavā nu ta indra pūrvyā mahāny uta stavāma nūtanā kṛtāni | stavā vajram bāhvor uśantaṁ stavā harī sūryasya ketū ||

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Pad Path

स्तव॑। नु। ते॒। इ॒न्द्र॒। पू॒र्व्या। म॒हानि॑। उ॒त। स्त॒वा॒म॒। नूत॑ना। कृ॒तानि॑। स्तव॑। वज्र॑म्। बा॒ह्वोः। उ॒शन्त॑म्। स्तव॑। हरी॒ इति॑। सूर्य॑स्य। के॒तू इति॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:11» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:4» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) प्रशंसायुक्त राजन् ! हम लोग (ते) आपके (पूर्व्या) प्राचीन (महानि) प्रशंसनीय बड़े-बड़े कामों की (नु) शीघ्र (स्तव) स्तुति अर्थात् प्रशंसा करें (उत) और (नूतना) नवीन (कृतानि) किये हुओं की (स्तवाम) प्रशंसा करें, तथा (बाह्वोः) भुजाओं में (वज्रम्) शस्त्र और अस्त्रों की (उशन्तम्) चाहना करते हुए आपकी (स्तव) स्तुति प्रशंसा करें तथा (सूर्यस्य) सूर्य की (केतू) किरणों के समान जो (हरी) धारणाकर्षण गुणयुक्त कर्मों की (स्तव) प्रशंसा करें ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। व्यतीत और वर्त्तमान आप्त धर्मात्मा सज्जनों ने जो धर्मयुक्त काम किये वा करते हैं, उन्हीं का अनुष्ठान और जनों को भी करना चाहिये ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे इन्द्र वयं ते पूर्व्यामहानि नु स्तवोत नूतना कृतानि स्तवाम बाह्वोर्वज्रमुशन्तं त्वां स्तव सूर्यस्य केतू इव तव हरी स्तव ॥६॥

Word-Meaning: - (स्तव) स्तवाम। अत्र विकरणव्यत्ययेन शप् पुरुषवचनव्यत्ययश्च, सर्वत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नु) शीघ्रम् (ते) तव (इन्द्र) प्रशंसया युक्त (पूर्व्या) प्राचीनानि (महानि) पूजनीयानि बृहत्तमानि (उत) अपि (स्तवाम) प्रशंसेम (नूतना) नवीनानि (कृतानि) अनुष्ठितानि (स्तव) स्तवाम। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (वज्रम्) शस्त्रास्त्रसमूहम् (बाह्वोः) भुजयोः (उशन्तम्) कामयमानम् (स्तव) स्तवाम। अत्रापि दीर्घः। (हरी) धारणाकर्षणकर्माणौ (सूर्यस्य) सवितुः (केतू) किरणौ ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैरतीतवर्त्तमानाप्तैर्यानि धर्म्याणि कर्माणि कृतानि वा क्रियन्ते तान्येवेतरैरनुष्ठेयानि ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. प्राचीन व अर्वाचीन आप्त धर्मात्मा सज्जनांनी जे धर्मयुक्त काम केलेले आहे व करीत आहेत त्याचेच अनुष्ठान इतर लोकांनीही करावे. ॥ ६ ॥