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उ॒त्ता॒नाया॑मजनय॒न्त्सुषू॑तं॒ भुव॑द॒ग्निः पु॑रु॒पेशा॑सु॒ गर्भः॑। शिरि॑णायां चिद॒क्तुना॒ महो॑भि॒रप॑रीवृतो वसति॒ प्रचे॑ताः॥

English Transliteration

uttānāyām ajanayan suṣūtam bhuvad agniḥ purupeśāsu garbhaḥ | śiriṇāyāṁ cid aktunā mahobhir aparīvṛto vasati pracetāḥ ||

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Pad Path

उ॒त्ता॒नाया॑म्। अ॒ज॒न॒य॒न्। सुऽसू॑तम्। भुव॑त्। अ॒ग्निः। पु॒रु॒ऽपेशा॑सु। गर्भः॑। शिरि॑णायाम्। चि॒त्। अ॒क्तुना॑। महः॑ऽभिः। अप॑रिऽवृतः। व॒स॒ति॒। प्रऽचे॑ताः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:10» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:2» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (अक्तुना) रात्रि और (महोभिः) बड़े-बड़े लोकों के साथ (अपरिवृतः) सब ओर से न स्वीकार किया हुआ (प्रचेतः) जो सोते प्राणियों को प्रबोधित कराता तु-तु में यज्ञ करनेवाले जन जिस (पुरुपेशासु) बहुत रूपोंवाली ओषधियों में (सुसूतम्) सुन्दरता से उत्पन्न हुए अग्नि को (अजनयन्) प्रकट करते जो (उत्तानायाम्) उत्ताने के समान सोती सी और (शिरिणायाम्) नष्ट हुई पृथिवी में (गर्भः) गर्भ के समान स्थित (अग्निः) अग्नि बिजुलीरूप (भुवत्) होता और (वसति) निवास करता है, उस अग्नि को (चित्) निश्चय करके प्रयुक्त करो अर्थात् कलाघरों में लगाओ ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्यो! जो अग्नि विद्यमान और नष्ट हुई पृथिवी में गर्भरूप विद्यमान है, उसी की विद्या को जानो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या योऽक्तुना महोभिश्चापरिवृतः प्रचेताः यं पुरुपेशासु सुसूतमृत्विजोऽजनयन् यम् उत्तानायां शिरिणायां च गर्भ इव स्थिताग्निर्भुवद्वसति तमग्निं चित् प्रयुङ्ग्ध्वम् ॥३॥

Word-Meaning: - (उत्तानायाम्) उत्तान इव शयानायां पृथिव्याम् (अजनयन्) (सुसूतम्) सुष्ठु प्रसूतम् (भुवत्) भवति (अग्निः) विद्युत् (पुरुपेशासु) पुरुणि पेशानि रूपाणि यासु तासु ओषधीषु (गर्भः) गर्भ इव स्थितः (शिरिणायाम्) हिंसितायाम् (चित्) अपि (अक्तुना) रात्र्या (महोभिः) महद्भिर्लोकैः (अपरिवृतः) परितः सर्वतो नावृतः (वसति) (प्रचेताः) यः शयानान् प्रचेतयति सः ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्या योऽग्निर्विद्यमानायां नष्टायां च पृथिव्यां गर्भरूपो विद्यते तद्विद्यां जानीत ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जो विद्यमान असलेला व नष्ट झालेला अग्नी पृथ्वीत गर्भरूपाने विद्यमान असतो तीच विद्या जाणा. ॥ ३ ॥