ये स्तो॒तृभ्यो॒ गोअ॑ग्रा॒मश्व॑पेशस॒मग्ने॑ रा॒तिमु॑पसृ॒जन्ति॑ सू॒रयः॑। अ॒स्माञ्च॒ तांश्च॒ प्र हि नेषि॒ वस्य॒ आ बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥
ye stotṛbhyo goagrām aśvapeśasam agne rātim upasṛjanti sūrayaḥ | asmāñ ca tām̐ś ca pra hi neṣi vasya ā bṛhad vadema vidathe suvīrāḥ ||
ये। स्तो॒तृऽभ्यः॑। गोऽअ॑ग्राम्। अश्व॑ऽपेशसम्। अग्ने॑। रा॒तिम्। उ॒प॒ऽसृ॒जन्ति॑। सू॒रयः॑। अ॒स्मान्। च॒। तान्। च॒। प्र। हि। नेषि॑। वस्यः॑। आ। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒ऽवीराः॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे अग्ने त्वं ये सूरयः स्तोतृभ्यो गोअग्रामश्वपेशसं रातिमुपसृजन्ति ताँश्चास्मांश्च वस्य आप्रणेषि हि सुवीरा वयं विदथे बृहद्वदेम ॥१६॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A