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यत्रौष॑धीः स॒मग्म॑त॒ राजा॑न॒: समि॑ताविव । विप्र॒: स उ॑च्यते भि॒षग्र॑क्षो॒हामी॑व॒चात॑नः ॥

English Transliteration

yatrauṣadhīḥ samagmata rājānaḥ samitāv iva | vipraḥ sa ucyate bhiṣag rakṣohāmīvacātanaḥ ||

Pad Path

यत्र॑ । ओष॑धीः । स॒म्ऽअग्म॑त । राजा॑नः । समि॑तौऽइव । विप्रः॑ । सः । उ॒च्य॒ते॒ । भि॒षक् । र॒क्षः॒ऽहा । अ॒मी॒व॒ऽचात॑नः ॥ १०.९७.६

Rigveda » Mandal:10» Sukta:97» Mantra:6 | Ashtak:8» Adhyay:5» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:8» Mantra:6


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यत्र) जिसके आश्रय में (ओषधीः) ओषधियाँ (समग्मत) सङ्गत होती हैं (समितौ) सभा में (राजानः-इव) जैसे राजकर्मचारी तथा राजसभासद् वैसे (सः-विप्रः) वह विद्वान् (रक्षोहा) रोगनाशक (अमीवचातनः) कृमिनाशक-भिषक् (उच्यते) कहा जाता है, जिसके आश्रय में ओषधियाँ चिकित्सार्थ मिलती हैं ॥६॥
Connotation: - राजा को आश्रय बनाकर राजसभासद् सभा में मिलकर जैसे कार्य करते हैं, ऐसे ही ओषधियाँ रोगी जन में वैद्य को आश्रय बनाकर अपने गुणों का प्रकाश करती हैं, इसलिए वैद्य को ओषधियों का गुणज्ञ और रोगों का निदानवेत्ता होना चाहिये ॥६॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यत्र) यस्मिन् यमाश्रित्य (ओषधीः) ओषधयः (समग्मत) सङ्गच्छन्ते प्राप्नुवन्ति (राजानः-समितौ-इव) यथा राजानो राजकर्मचारिणः सभासदः सभायां राजनि तथा (सः-विप्रः-रक्षोहा-अमीवचातनः-भिषक्-उच्यते) स विद्वान् राक्षसनाशको-रोगनाशको भिषक् कथ्यते यमाश्रित्य-ओषधयः उपयुक्ता भवन्ति ॥६॥