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ह॒ये जाये॒ मन॑सा॒ तिष्ठ॑ घोरे॒ वचां॑सि मि॒श्रा कृ॑णवावहै॒ नु । न नौ॒ मन्त्रा॒ अनु॑दितास ए॒ते मय॑स्कर॒न्पर॑तरे च॒नाह॑न् ॥

English Transliteration

haye jāye manasā tiṣṭha ghore vacāṁsi miśrā kṛṇavāvahai nu | na nau mantrā anuditāsa ete mayas karan paratare canāhan ||

Pad Path

ह॒ये । जाये॑ । मन॑सा । तिष्ठ॑ । घोरे॑ । वचां॑सि । मि॒श्रा । कृ॒ण॒वा॒व॒है॒ । नु । न । नौ॒ । मन्त्राः॑ । अनु॑दितासः । ए॒ते । मयः॑ । क॒र॒न् । पर॑ऽतरे । च॒न । अह॑न् ॥ १०.९५.१

Rigveda » Mandal:10» Sukta:95» Mantra:1 | Ashtak:8» Adhyay:5» Varga:1» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:8» Mantra:1


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BRAHMAMUNI

इस सूक्त में पति-पत्नी के ऐसे ही राजा-प्रजा के धर्म का आदर्श, घर में राष्ट्र में जार चोर को न प्रविष्ट होने दिया जावे, कामी पति स्त्री न हों, सन्तानार्थ गृहस्थ-धर्म सेवें, अन्त में ब्रह्मचर्य धारण करें विषय हैं।

Word-Meaning: - (हये) हे गतिशील वंश को बढ़ानेवाली या राष्ट्र को बढ़ानेवाली (जाये) पत्नी ! राष्ट्र में जायमान प्रजा ! (घोरे) दुःखप्रद भयंकर कष्टों में (मनसा तिष्ठ) मनोभाव से मनोयोग से स्थिर रह (मिश्रा) परस्पर मेल करानेवाले (वचांसि नु) वचनों को अवश्य (कृणवावहै) सङ्कल्पित करें-बोलें (नौ) हम दोनों के (एते) ये (अनुदितासः) न प्रकट करने योग्य-गोपनीय (मन्त्राः) विचार (मयः) सुख (न करन्) क्या नहीं करते हैं-क्या नहीं करेंगे ? निश्चित करेंगे (परतरे) अन्तिम (अहन्-चन) किसी दिन-किसी काल में अवश्य सुख करेंगे सन्तान प्राप्त करने पर ॥१॥
Connotation: - युवक युवति का विवाह हो जावे, युवक भावी स्नेह के लिये सन्तान-विषयक विचार का प्रस्ताव करता है एवं रजा राज्याभिषेक के पश्चात् अधिक दृढ़ सम्बन्ध के विचार प्रस्तुत करता है ॥१॥
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BRAHMAMUNI

अत्र सूक्ते पतिपत्नीधर्मस्य राजप्रजाधर्मस्य चोत्तम आदर्शः प्रदर्श्यते, गृहे राष्ट्रे च जारश्चौरो वा न प्रविशेत्, पतिः कामप्रधानो न भवेत् तथा च स्त्री, गृहस्थस्यान्तिमे काले ब्रह्मचर्यं सेव्यम्।

Word-Meaning: - (हये जाये) हे गतिशीले वंशवर्धिके राष्ट्रवर्धिके वा “हि गतौ वृद्धौ च” [स्वादि०] पत्नि ! राष्ट्रे जायमाने प्रजे ! वा (घोरे) तेजस्विनि ! दुष्टानां दुःखप्रदे “घोरा भयङ्करा दुष्टानां दुःखप्रदाः” [ऋ० ६।६१।७ दयानन्दः] (मनसा तिष्ठ) मनोभावेन मनोयोगेन स्थिरा भव (मिश्रा वचांसि नु कृणवावहै) मिश्रानि परस्परं सम्मेलनकराणि वचनानि खल्ववश्यं कुर्वः (नौ) आवयोः (एते-अनुदितासः-मन्त्राः) इमे गोपनीया विचाराः (मयः-न करन्) सुखं किं न कुर्वन्ति करिष्यन्ति ? निश्चितं करिष्यन्ति (परतरे चन-अहन्) अन्तिमे दिने कालेऽवश्यं सुखं करिष्यन्ति ॥१॥