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सु॒प॒र्णा वाच॑मक्र॒तोप॒ द्यव्या॑ख॒रे कृष्णा॑ इषि॒रा अ॑नर्तिषुः । न्य१॒॑ङ्नि य॒न्त्युप॑रस्य निष्कृ॒तं पु॒रू रेतो॑ दधिरे सूर्य॒श्वित॑: ॥

English Transliteration

suparṇā vācam akratopa dyavy ākhare kṛṣṇā iṣirā anartiṣuḥ | nyaṅ ni yanty uparasya niṣkṛtam purū reto dadhire sūryaśvitaḥ ||

Pad Path

सु॒ऽप॒र्णाः । वाच॑म् । अ॒क्र॒त॒ । उप॑ । द्यवि॑ । आ॒ऽख॒रे । कृष्णाः॑ । इ॒षि॒राः । अ॒न॒र्ति॒षुः॒ । न्य॑क् । नि । य॒न्ति॒ । उप॑रस्य । निः॒ऽकृ॒तम् । पु॒रु । रेतः॑ । द॒धि॒रे॒ । सू॒र्य॒ऽश्वितः॑ ॥ १०.९४.५

Rigveda » Mandal:10» Sukta:94» Mantra:5 | Ashtak:8» Adhyay:4» Varga:29» Mantra:5 | Mandal:10» Anuvak:8» Mantra:5


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सूर्यश्वितः सुपर्णाः) सूर्य के समान तेजस्वी ज्ञान से लोगों को उत्तमरूप से पूर्ण करनेवाले विद्वान् (वाचम्-उप-अक्रत) स्तुतिवाणी का उपयोग करते हैं, समर्थ बनाते हैं (द्यवि-आखरे) दिव्य गहन स्थानरूप परमात्मा में (कृष्णाः) परमात्मगुणों का आकर्षण करनेवाले (इषिराः) उसे चाहनेवाले (अनर्तिषुः) नृत्य करते हैं (उपरस्य) संसार से उपरत नित्यमुक्त परमात्मा के (निष्कृतम्) शुभ आनन्द को (न्यक्-नियन्ति) अपने अन्दर नितरां प्राप्त करते हैं (पुररेतः-दधिरे) बहुत अध्यात्मबलों को धारण करते हैं ॥५॥
Connotation: - सूर्य के समान तेजस्वी ज्ञानी जन अपने ज्ञान से अन्य जनों को ज्ञानपूर्ण बनाते हैं, अपनी स्तुतियों को दिव्य परमात्मा में समर्पित करते हैं, उसके गुणों का आकर्षण करते हुए और उसकी कामना करते हुए आनन्द से नृत्य किया करते हैं तथा संसार से उपरत नियममुक्त परमात्मा को अपने अन्दर प्राप्त करके अध्यात्मबलों को धारण करते हैं ॥५॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सूर्यश्वितः सुपर्णाः) सूर्य इव तेजस्विना ज्ञानेन सुष्ठु पूरकाः-विद्वांसः (वाचम्-उप-अक्रत) स्तुतिवाचमुपकुर्वन्ति समर्थयन्ति (द्यवि-आखरे) दिव्ये गहनस्थाने परमात्मनि (कृष्णाः-इषिराः-अनर्तिषुः) परमात्मगुणानामाकर्षकाः परमात्मानं कामयमाना नृत्यन्ति (उपरस्य निष्कृतं न्यक्-नियन्ति) संसारत उपरतस्य “उपरासः-उपरताः” [यजु० १९।६८ दयानन्दः] नित्यमुक्तस्य परमात्मनः शुद्धमानन्दं स्वान्तरे नितरां प्राप्नुवन्ति (पुरूरेतः-दधिरे) पुरूणि बहूनि रेतांसि बलानि-अध्यात्मबलानि धारयन्ति ॥५॥