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तव॒ श्रियो॑ व॒र्ष्य॑स्येव वि॒द्युत॑श्चि॒त्राश्चि॑कित्र उ॒षसां॒ न के॒तव॑: । यदोष॑धीर॒भिसृ॑ष्टो॒ वना॑नि च॒ परि॑ स्व॒यं चि॑नु॒षे अन्न॑मा॒स्ये॑ ॥

English Transliteration

tava śriyo varṣyasyeva vidyutaś citrāś cikitra uṣasāṁ na ketavaḥ | yad oṣadhīr abhisṛṣṭo vanāni ca pari svayaṁ cinuṣe annam āsye ||

Pad Path

तव॑ । श्रियः॑ । व॒र्ष्य॑स्यऽइव । वि॒ऽद्युतः॑ । चि॒त्राः । चि॒कि॒त्रे॒ । उ॒षसा॑म् । न । के॒तवः॑ । यत् । ओष॑धीः । अ॒भिऽसृ॑ष्टः । वना॑नि । च॒ । परि॑ । स्व॒यम् । चि॒नु॒षे । अन्न॑म् । आ॒स्ये॑ ॥ १०.९१.५

Rigveda » Mandal:10» Sukta:91» Mantra:5 | Ashtak:8» Adhyay:4» Varga:20» Mantra:5 | Mandal:10» Anuvak:8» Mantra:5


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (तव) हे परमात्मन् ! तेरी (श्रियः) दर्शन आभाएँ (वर्ष्यस्य-इव विद्युतः-चित्राः) बरसनेवाले मेघ की विचित्र-बिजलियों के समान प्रतीत होती हैं (उषसां केतवः-न) अथवा, प्रातःकालीन उषाओं की चमकती धाराओं के समान प्रतीत होती हैं (यत्-ओषधीः) जब दोषों को पीनेवाले विद्वानों तथा (वनानि-च-अभिसृष्टः) सुभजनीय अन्तःकरणों को प्राप्त होता है, (स्वयं परि चिनुषे) तू स्वयं संवरण करता है, तो (आस्ये-अन्नम्) जैसे कोइ मुख में अन्न को संवरण करता है-लेता है-पचाता है ॥५॥
Connotation: - परमात्मा की दर्शन-आभाएँ विद्युत् की धाराओं के समान या प्रातःकालीन उषाओं की चमकती धाराओं के समान विद्वानों को प्राप्त होती हैं, विद्वान् जनों को वह साक्षात् होता है और उन्हें अपने अन्दर ऐसे धारण करता है, जैसे कोई अभीष्ट अन्न को सुरक्षित रखता है ॥५॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (तव) हे अग्ने परमात्मन् ! तव (श्रियः) शोभाः-दर्शनाभासः (वर्ष्यस्य-इव विद्युतः-चित्राः) वर्षितुं योग्यस्य मेघस्य विद्युत इव चित्रा आश्चर्यमय्यः प्रतीयन्ते (उषसां केतवः-न) यद्वा-प्रातस्तनीनामुषसां भासा रश्मिधारा-इव प्रतीयन्ते (यत्-ओषधीः-वनानि-च) यदा-ओषधीन् विदुषः प्रति “ओषधयः-दोषं धयन्तीति) [निरु० ९।२७] “ओषधेः-ओषधिवद् वर्तमान विद्वन्” [यजुः १२।१०० दयानन्दः] तथा सम्भजनीयान्यन्तःकरणानि (अभि-सृष्टः) प्राप्तः सन् (स्वयं परि चिनुषे) त्वं स्वयं परिचिनोषि-संवृणोषि तर्हि (आस्ये-अन्नम्) यथा कश्चिददनीयं मुखे संवृणोति संरक्षति ॥५॥