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यस्तुभ्य॑मग्ने अ॒मृता॑य॒ मर्त्य॑: स॒मिधा॒ दाश॑दु॒त वा॑ ह॒विष्कृ॑ति । तस्य॒ होता॑ भवसि॒ यासि॑ दू॒त्य१॒॑मुप॑ ब्रूषे॒ यज॑स्यध्वरी॒यसि॑ ॥

English Transliteration

yas tubhyam agne amṛtāya martyaḥ samidhā dāśad uta vā haviṣkṛti | tasya hotā bhavasi yāsi dūtyam upa brūṣe yajasy adhvarīyasi ||

Pad Path

यः । तुभ्य॑म् । अ॒ग्ने॒ । अ॒मृता॑य । मर्त्यः॑ । स॒म्ऽइधा॑ । दाश॑त् । उ॒त । वा॒ । ह॒विःऽकृ॑ति । तस्य॑ । होता॑ । भ॒व॒सि॒ । यासि॑ । दू॒त्य॑म् । उप॑ । ब्रू॒षे॒ । यज॑सि । अ॒ध्व॒रि॒ऽयसि॑ ॥ १०.९१.११

Rigveda » Mandal:10» Sukta:91» Mantra:11 | Ashtak:8» Adhyay:4» Varga:22» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:8» Mantra:11


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे परमात्मन् ! (यः-मर्त्यः) जो मरणधर्मा मनुष्य (तुभ्यम्-अमृताय) तुझ अमर अनश्वर के लिए या तेरी संगति से अमृतत्व प्राप्त करने के लिए (समिधा दाशत्) समिद् रूप ध्यान से या समिद् भावना से स्वात्मा को देता है-समर्पित करता है अथवा (तस्य हविष्कृति) उस अध्यात्मयाजी की आत्महविक्रिया जिसमें है, उस अध्यात्मयज्ञ में (होता भवसि) तू होता बनता है (दूत्यं यासि) अध्यात्ममार्ग का प्रदर्शन करता है (उप ब्रूषे) और उपदेश करता है (यजसि) तू यजन कराता है (अध्वरीयसि) अध्वर्यु कर्म का आचरण करता है, तू ही उपास्य है ॥११॥
Connotation: - जब मनुष्य अमृतत्व पाने के लिए उस अमर परमात्मा के प्रति अध्यात्मयज्ञ में अपनी आत्मा को समिधा बनाकर समर्पित करता है, तो वह परमात्मा उसमें होता बनकर आगे चलता है और उपदेश देता है। वह ऐसा परमात्मा स्तुति करने योग्य है ॥११॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे परमात्मन् ! यः-मर्त्यः) यो मरणधर्मा मनुष्यः (तुभ्यम्-अमृताय) तुभ्यममरायानश्वराय त्वत्सङ्गत्यामृतत्वप्रापणाय वा (समिधा दाशत्) समिद्रूपेण ध्यानेन समिद्भावनयात्मानं ददाति समर्पयति (उत वा) अपि च (तस्य हविष्कृति होता भवसि) तस्याध्यात्मयाजिनः आत्महविःक्रिया यस्मिन् तस्मिन्नध्यात्मयज्ञे त्वं होता भवसि (दूत्यं यासि) दूतकर्म-अध्यात्ममार्गस्य प्रदर्शनं कारयसि (उप ब्रूषे) प्रवचनं करोषि (यजसि) याजयसि “अन्तर्गतणिजर्थः” (अध्वरीयसि) अध्वर्युकर्माचरसि त्वं हि खलूपास्यः ॥११॥