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इ॒दमा॑प॒: प्र व॑हत॒ यत्किं च॑ दुरि॒तं मयि॑ । यद्वा॒हम॑भिदु॒द्रोह॒ यद्वा॑ शे॒प उ॒तानृ॑तम् ॥

English Transliteration

idam āpaḥ pra vahata yat kiṁ ca duritam mayi | yad vāham abhidudroha yad vā śepa utānṛtam ||

Pad Path

इ॒दम् । आ॒पः॒ । प्र । व॒ह॒त॒ । यत् । किम् । च॒ । दुः॒ऽइ॒तम् । मयि॑ । यत् । वा॒ । अ॒हम् । अ॒भि॒ऽदु॒द्रोह॑ । यत् । वा॒ । शे॒पे । उ॒त । अनृ॑तम् ॥ १०.९.८

Rigveda » Mandal:10» Sukta:9» Mantra:8 | Ashtak:7» Adhyay:6» Varga:5» Mantra:8 | Mandal:10» Anuvak:1» Mantra:8


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (आपः) जलो ! (इदम्) इस प्रसिद्ध शरीरमल-शरीर पर लिप्त मल को (प्रवहत) परे बहा दो (यत् किञ्च दुरितं मयि) जो कुछ दुःख से गमन-किसी कार्य में गति हो, उस अन्धरूप तमोगुण असावधानभाव को मेरे अन्दर से दूर करो (यत्-वा) और जो (अहम्-अभिदुद्रोह) मैं द्रोह-क्रोध करूँ, उसे भी परे करो (यत्-वा-उत) और जो भी (अनृतं शेपे) असत्य -झूठ या आक्षेपवचन किसी को बोलूँ, उसे भी दूर करो ॥८॥
Connotation: - जल मनुष्य के देहमलों को अलग करता है, तमोगुण, आलस्य, असावधानता को मिटाता है, क्रोध को शान्त करता है। बुरा कहने, निन्दा करने, अहित वचन बोलने से उत्पन्न क्लेश को भी दूर करता है-उस प्रवृत्ति को हटाता है। जल से स्नान, नेत्रमार्जन और उसके पान द्वारा मनुष्य पापकर्म के उपरान्त पश्चात्ताप करता है। इसी प्रकार आप्तजन के सत्सङ्ग से मलिनता, तमोगुण की प्रवृत्ति, क्रोधभावना और निन्दा से परे हो जाता है ॥८॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (आपः) हे आपः ! (इदम्) इदं प्रसिद्धं शरीरोपलिप्तं मलं (प्रवहत) प्रवहत-दूरीकुरुत, तथा (यत् किञ्च दुरितं मयि) यत् किमपि दुरितं दुर्गतगमनं यत्-तत् तमोऽसावधानत्वं मयि भवेत् तदपि दूरं गमयत “सूर्य-उद्यन्। दिवाकरोऽति द्युम्नैस्तमांसि विश्वातारीद् दुरितानि शुक्रः” [अथर्व० १३।२।२४] (यत्-वा) यच्च (अहम्-अभिदुद्रोह) अहं द्रोहं क्रोधं कुर्यां तदपि दूरीकुरुत (यत्-वा) यच्च (उत) अपि (अनृतं शेपे) असत्यं शपामि-अपवदामि, निन्दामि-अन्यथा प्रलपामि वा तदपि मत्तो दूरीकुरुत ॥८॥