यो व॑: शि॒वत॑मो॒ रस॒स्तस्य॑ भाजयते॒ह न॑: । उ॒श॒तीरि॑व मा॒तर॑: ॥
English Transliteration
yo vaḥ śivatamo rasas tasya bhājayateha naḥ | uśatīr iva mātaraḥ ||
Pad Path
यः । वः॒ । शि॒वऽत॑मः । रसः॑ । तस्य॑ । भा॒ज॒य॒त॒ । इ॒ह । नः॒ । उ॒श॒तीःऽइ॑व । मा॒तरः॑ ॥ १०.९.२
Rigveda » Mandal:10» Sukta:9» Mantra:2
| Ashtak:7» Adhyay:6» Varga:5» Mantra:2
| Mandal:10» Anuvak:1» Mantra:2
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BRAHMAMUNI
Word-Meaning: - (वः) हे जलों ! तुम्हारा (यः) जो (शिवतमः-रसः) अत्यन्त कल्याणसाधक रस है-स्वाद है (तस्य नः) उसे हमें (इह) इस शरीर में (भाजयत) सेवन कराओ (उशतीः-मातरः-इव) पुत्रसमृद्धि को चाहती हुई माताओं के समान, वे जैसे अपना दूध पुत्र को सेवन कराती हैं-पिलाती हैं ॥२॥
Connotation: - जलों के अन्दर तृप्तिकर स्वाद है, जोकि सुख देनेवाला है और भोजन को रस में परिणत करता है। इसी प्रकार आप विद्वान् जनों का ज्ञानरस आत्मा को सुख वा जीवन देता है। उनके उपदेशों का श्रवण करना चाहिये ॥२॥
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BRAHMAMUNI
Word-Meaning: - (वः) हे आपः ! युष्माकं (यः) यः खलु (शिवतमः-रसः) कल्याणतमोऽतिकल्याणसाधको रसोऽस्ति (तस्य नः) तम् “व्यत्ययेन षष्ठी” नोऽस्मान् (इह) अस्मिन् शरीरे (भाजयत) सेवयत (उशतीः-मातरः-इव) पुत्रसमृद्धिं कामयमाना मातर इव, यथा ताः स्वस्तन्यं रसं दुग्धं पुत्रं भाजयन्ति पाययन्ति तद्वत् ॥२॥