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परा॑ शृणीहि॒ तप॑सा यातु॒धाना॒न्परा॑ग्ने॒ रक्षो॒ हर॑सा शृणीहि । परा॒र्चिषा॒ मूर॑देवाञ्छृणीहि॒ परा॑सु॒तृपो॑ अ॒भि शोशु॑चानः ॥

English Transliteration

parā śṛṇīhi tapasā yātudhānān parāgne rakṣo harasā śṛṇīhi | parārciṣā mūradevāñ chṛṇīhi parāsutṛpo abhi śośucānaḥ ||

Pad Path

परा॑ । शृ॒णी॒हि॒ । तप॑सा । या॒तु॒ऽधाना॑न् । परा॑ । अ॒ग्ने॒ । रक्षः॑ । हर॑सा । शृ॒णी॒हि॒ । परा॑ । अ॒र्चिषा॑ । मूर॑ऽदेवान् । शृ॒णी॒हि॒ । परा॑ । अ॒सु॒ऽतृपः॑ । अ॒भि । शोशु॑चानः ॥ १०.८७.१४

Rigveda » Mandal:10» Sukta:87» Mantra:14 | Ashtak:8» Adhyay:4» Varga:7» Mantra:4 | Mandal:10» Anuvak:7» Mantra:14


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे तेजस्वी नायक ! (यातुधानान्) पीड़ा देनेवालों को (तपसा परा शृणीहि) तापक अस्त्र से चूर्ण कर दे (रक्षः) राक्षस को-दुष्ट को (हरसा परा शृणीहि) प्राणहारक तेज से नष्ट कर दे (मूरदेवान्) मूढ़ मनवाले अन्यों को मारनेवाले दुष्टों को (अर्चिषा परा शृणीहि) ज्वाला अस्त्र से नष्ट कर, (शोशुचानः) देदीप्यमान हुआ (असुतृपः) अन्यों के प्राणों से तृप्त होनेवाले दुष्टों को (अभि-परा-शृणीहि) आक्रमण करके नष्ट कर ॥१४॥
Connotation: - सेनानायक को चाहिए कि पीड़ा देनेवाले राक्षसवृत्ति के मूढ़ जनों, जो दूसरों को मारने में प्रसन्नता अनुभव करते हैं, ऐसे लोगों को तथा दूसरों के प्राणों से-प्राणों को तृप्त करनेवालों को नष्ट करे ॥१४॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे तेजस्विन् नायक ! (यातुधानान् तपसा परा शृणीहि) पीडाधारकान् तापकास्त्रेण चूर्णय (रक्षः-हरसा परा शृणीहि) राक्षसं प्राणहारकतेजसा नाशय (मूर-देवान्-अर्चिषा परा शृणीहि) मूढमनसोऽन्यस्य मारणे क्रीडिनो दुष्टान् ज्वालास्त्रेण नाशय (शोशुचानः-असुतृपः-अभि परा-शृणीहि) देदीप्यमानोऽन्येषां प्राणैस्तृप्यतो दुष्टान्-अभिक्रम्य नाशय ॥१४॥