Go To Mantra

पुन॒रेहि॑ वृषाकपे सुवि॒ता क॑ल्पयावहै । य ए॒ष स्व॑प्न॒नंश॒नोऽस्त॒मेषि॑ प॒था पुन॒र्विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥

English Transliteration

punar ehi vṛṣākape suvitā kalpayāvahai | ya eṣa svapnanaṁśano stam eṣi pathā punar viśvasmād indra uttaraḥ ||

Pad Path

पुनः॑ । आ । इ॒हि॒ । वृ॒षा॒क॒पे॒ । सु॒वि॒ता । क॒ल्प॒या॒व॒है॒ । यः । ए॒षः । स्व॒प्न॒ऽनंश॑नः । अस्त॑म् । एषि॑ । प॒था । पुनः॑ । विश्व॑स्मात् । इन्द्रः॑ । उत्ऽत॑रः ॥ १०.८६.२१

Rigveda » Mandal:10» Sukta:86» Mantra:21 | Ashtak:8» Adhyay:4» Varga:4» Mantra:6 | Mandal:10» Anuvak:7» Mantra:21


Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (वृषाकपे) हे सूर्य ! (यः-एषः-स्वप्ननंशनः) जो यह तू निद्रानाशक-जगानेवाला (पथा पुनः) मार्ग से फिर (अस्तम्-एषि) घर को प्राप्त होता है (पुनः-एहि) फिर आ (सुविता कल्पयावहै) हम दोनों उत्तरध्रुव इन्द्राणी व्योमकक्षा तेरे लिये अनुकूल कार्यसम्पादन करते हैं ॥२१॥
Connotation: - सूर्य उत्तरध्रुव की ओर तथा वसन्तसम्पात की ओर पुनः-पुनः जाया-आया  करता है, इससे उत्तरायण और दक्षिणायन ग्रीष्मकाल और शीतकाल बनता रहता है ॥२१॥
Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (वृषाकपे) हे वृषाकपे सूर्य ! (यः-एषः-स्वप्ननंशनः) य एष त्वं (पथा पुनः-अस्तम्-एषि) निद्रानाशकमार्गेण पुनः-गृहं प्राप्नोषि (पुनः-एहि) पुनरागच्छ (सुविता कल्पयावहै) आवामहमिन्द्र उत्तरध्रुवोऽथेन्द्राणि व्योमकक्षा च तुभ्यं सुवितानि सुगतानि कर्माणि सम्पादयावः ॥२१॥