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अघो॑रचक्षु॒रप॑तिघ्न्येधि शि॒वा प॒शुभ्य॑: सु॒मना॑: सु॒वर्चा॑: । वी॒र॒सूर्दे॒वका॑मा स्यो॒ना शं नो॑ भव द्वि॒पदे॒ शं चतु॑ष्पदे ॥

English Transliteration

aghoracakṣur apatighny edhi śivā paśubhyaḥ sumanāḥ suvarcāḥ | vīrasūr devakāmā syonā śaṁ no bhava dvipade śaṁ catuṣpade ||

Pad Path

अघो॑रऽचक्षुः । अप॑तिऽघ्नी । ए॒धि॒ । शि॒वा । प॒शुऽभ्यः॑ । सु॒ऽमनाः॑ । सु॒ऽवर्चाः॑ । वी॒र॒ऽसूः । दे॒वऽका॑मा । स्यो॒ना । शम् । नः॒ । भ॒व॒ । द्वि॒ऽपदे॑ । शम् । चतुः॑ऽपदे ॥ १०.८५.४४

Rigveda » Mandal:10» Sukta:85» Mantra:44 | Ashtak:8» Adhyay:3» Varga:28» Mantra:4 | Mandal:10» Anuvak:7» Mantra:44


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अघोरचक्षुः) हे वधू ! तू प्रियदर्शन (अपतिघ्नी) पति को पीड़ा न देनेवाली अपि तु सुखद (एधि) हो (पशुभ्यः) देखनेवाले वंशजों के लिये तथा अन्य जनों के लिए भी (शिवा) कल्याणकरी (सुमनाः) शोभन मनवाली-शिवसङ्कल्पवाली (सुवर्चाः) शोभन तेजवाली हो (वीरसूः) प्रशस्त सन्तान उत्पन्न करनेवाली (देवकामा) पतिदेव की हितकामना करनेवाली तथा देवरों की हितकामना करनेवाली भी (स्योना) स्वयं सुखरूप (नः-द्विपदे शं चतुष्पदे शं भव) हमारे दो पैरवाले के लिये कल्याणकरी, चार पैरवाले के लिये कल्याणकरी हो ॥४४॥
Connotation: - वधू प्रियदर्शन पति, देवर तथा वंशजों और अन्य जनों की हितकामना करनेवाली, स्वयं प्रसन्न रहते हुए घर के पशूओं का भी हित चाहनेवाली होनी चाहिए ॥४४॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अघोरचक्षुः) अक्रूरदर्शना-प्रियदर्शना (अपतिघ्नी) पतिपीडिका न, पत्ये सुखदा (रुधि) भव (पशुभ्यः शिवा सुमनाः सुवर्चाः) पश्यद्भ्यो वंश्येभ्योऽन्येभ्यो जनेभ्यश्च कल्याणकरी शोभनमनाः शिवसङ्कल्पा शोभना तेजस्विनी भव (वीरसूः) प्रशस्तपुत्रोत्पादयित्री (देवकामा) निजपतिदेवं कामयमाना ‘देवृकामा’ पाठे तु देवॄन् कामयमाना (स्योना) स्वयं सुखरूपा (नः-द्विपदे शं चतुष्पदे शं भव) अस्मभ्यं तथा मनुष्यमात्राय पशुमात्राय कल्याणकरी भव ॥४४॥