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यस्ते॑ म॒न्योऽवि॑धद्वज्र सायक॒ सह॒ ओज॑: पुष्यति॒ विश्व॑मानु॒षक् । सा॒ह्याम॒ दास॒मार्यं॒ त्वया॑ यु॒जा सह॑स्कृतेन॒ सह॑सा॒ सह॑स्वता ॥

English Transliteration

yas te manyo vidhad vajra sāyaka saha ojaḥ puṣyati viśvam ānuṣak | sāhyāma dāsam āryaṁ tvayā yujā sahaskṛtena sahasā sahasvatā ||

Pad Path

यः । ते॒ । म॒न्यो॒ इति॑ । अवि॑धत् । व॒ज्र॒ । सा॒य॒क॒ । सहः॑ । ओजः॑ । पु॒ष्य॒ति॒ । विश्व॑म् । आ॒नु॒षक् । सा॒ह्याम॑ । दास॑म् । आर्य॑म् । त्वया॑ । यु॒जा । सहः॑ऽकृतेन । सह॑सा । सह॑स्वता ॥ १०.८३.१

Rigveda » Mandal:10» Sukta:83» Mantra:1 | Ashtak:8» Adhyay:3» Varga:18» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:6» Mantra:1


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BRAHMAMUNI

इस सूक्त में स्वाभिमानरूप आत्मप्रभाव, दोषनिवारण में राष्ट्र चलाने में सब कामों में सफलता पाने के लिये बाहिरी-भीतरी शत्रुओं पर विजय पाने में समर्थ आदि विषय हैं।

Word-Meaning: - (मन्यो) हे स्वात्मतेज-अन्यों को अपना प्रभाव मनानेवाले ! (वज्र सायक) वज्ररूप तथा कामादि दोषों का अन्त करनेवाले ! (यः-ते-अविधत्) जो तेरा सेवन करता है (सह-ओजः) ओज-आत्मबल के साथ (विश्वम्-आनुषक् पुष्यति) सब अनुषक्तप्राप्त या प्रासङ्गिक कर्म को पोषित करता है-अनुकूल बनाता है (त्वया सहस्कृतेन) तुझ बलसम्पादक (सहस्वता सहसा) बलवान् तथा दूसरों के बल को सहनेवाले (युजा) युक्त करनेवाले सहायक के साथ (दासम्-आर्यम्) क्षय करनेवाले और कृपा करनेवाले को हम (साह्याम) सहन करें अर्थात् न दुःखी हों, न मोह में पड़ें ॥१॥
Connotation: - मानव के अन्दर स्वाभिमान या आत्मतेज ऐसा होना चाहिए, जो दूसरों को प्रभावित कर सके। जो अपने अन्दर इसे धारण करता है, वह प्राप्त अवसर को अनुकूल बना लेता है। ऐसे आन्तरिक बलवान् सहनशील स्वभाव को धारण करके वह पीड़ा देनेवाले या कृपा करनेवाले के व्यवहार से दुःख या मोह में नहीं पड़ता है ॥१॥
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BRAHMAMUNI

अस्मिन् सूक्ते स्वाभिमानरूप आत्मप्रभावो दोषनिवारणे राष्ट्रचालने सर्वकामेषु साफल्यप्राप्तये खल्वाश्रयणीयः बाह्यान्तरिकशत्रूणामुपरि विजयप्रापणाय च समर्थः।

Word-Meaning: - (मन्यो) हे स्वात्मतेजः ! अन्यान् अस्माकं प्रभावं मानयितः “मन्युर्मन्यतेर्दीप्तिकर्मणः” [निरु० १०।२९] (वज्र सायक) वज्ररूपकामादिदोषाणामन्तकर ! (यः-ते-अविधत्) यस्तुभ्यं परिचरति सद्भावं प्रदर्शयति (सह-ओजः) यो मन्युरोजसात्मबलेन सह (विश्वम्-आनुषक् पुष्यति) सर्वमनुषक्तं प्रासङ्गिकं कर्म पोषयति खल्वनुकूलं फलं प्रयच्छति (त्वया सहस्कृतेन) त्वया बलकृतेन-बलसम्पादकेन (सहस्वता सहसा) बलवतान्येषां बलं सहमानेन (युजा) योजकेन-सहायकेन सह (दासम्-आर्यम् साह्याम) क्षयकरन्तथार्यं-श्रेष्ठं कृपाकरं च जनं सहामहे-न दुःखं प्राप्नुमो न मोहं गच्छामः ॥१॥