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स्व॒स्ति नो॑ दि॒वो अ॑ग्ने पृथि॒व्या वि॒श्वायु॑र्धेहि य॒जथा॑य देव । सचे॑महि॒ तव॑ दस्म प्रके॒तैरु॑रु॒ष्या ण॑ उ॒रुभि॑र्देव॒ शंसै॑: ॥

English Transliteration

svasti no divo agne pṛthivyā viśvāyur dhehi yajathāya deva | sacemahi tava dasma praketair uruṣyā ṇa urubhir deva śaṁsaiḥ ||

Pad Path

स्व॒स्ति । नः॒ । दि॒वः । अ॒ग्ने॒ । पृ॒थि॒व्याः । वि॒श्वऽआ॑युः । धे॒हि॒ । य॒जथा॑य । दे॒व॒ । सचे॑महि । तव॑ । द॒स्म॒ । प्र॒ऽके॒तैः । उ॒रु॒ष्य । नः॒ । उ॒रुऽभिः॑ । दे॒व॒ । शंसैः॑ ॥ १०.७.१

Rigveda » Mandal:10» Sukta:7» Mantra:1 | Ashtak:7» Adhyay:6» Varga:2» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:1» Mantra:1


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BRAHMAMUNI

इस सूक्त में अग्नि शब्द से अग्रणायक परमात्मा कहा जाता है।

Word-Meaning: - (अग्ने देव) हे अग्रणायक परमात्मदेव ! (यजथाय) जीवनसम्पादन, श्रेष्ठ कर्म करने तथा दान करने के लिये (नः) हमारे लिए (दिवः स्वस्ति) द्युलोक-आकाश से कल्याणकर वृष्टिजल को (पृथिव्याः) पृथिवी से (विश्वायुः) सब प्रकार के अन्न को (धेहि) धारण करा-प्राप्त करा (दस्म देव) हे दर्शनीय देव ! (सचेमहि) हम तेरे अन्दर समवेत हों-तेरी सङ्गति करें (तव शंसैः-उरुभिः-प्रकेतैः-नः-उरुष्य) तेरे अपने प्रशंसनीय बहुत ज्ञानप्रकाशों से हमारी रक्षा कर ॥१॥
Connotation: - परमात्मा आकाश से वृष्टिजल और पृथिवी से विविध अन्नों को हमें शुभ जीवनयात्रा के लिए देता है, साथ ही वह अपने प्रशंसनीय ज्ञानप्रकाशों द्वारा हमारी रक्षा करता है, अतः उसकी सङ्गति और उपासना करनी चाहिये ॥१॥
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BRAHMAMUNI

अत्र सूक्तेऽग्निशब्देनाग्रणायकः परमात्मा प्रतिपाद्यते।

Word-Meaning: - (अग्ने देव) हे अग्रणायक परमात्मदेव ! (यजथाय) जीवनसम्पादनाय, श्रेष्ठकर्मकरणाय, दानाय (नः) अस्मभ्यम् (दिवः) द्युलोकात् (स्वस्ति) कल्याणं कल्याणकरं वर्षं वृष्टिजलम् (पृथिव्याः) पृथिवीतः (विश्वायुः) सर्वान्नम् “आयुः-अन्ननाम” [निघ० २।७] (धेहि) धापय-प्रापय (दस्म देव) हे दर्शनीय देव ! “दस दर्शने” [चुरादि०] (सचेमहि) वयं त्वयि समवेता भवेम “षच समवाये” [भ्वादि०] (तव शंसैः-उरुभिः-प्रकेतैः-नः-उरुष्य) तव प्रशंसनीयैर्बहुभिर्ज्ञानप्रकाशैरस्मान् रक्ष “उरुष्यति रक्षाकर्मा” [निरु० ५।२३] ॥१॥