Word-Meaning: - (ऋषयः-इत्-विरूपासः) मन्त्रार्थद्रष्टा, विशिष्टता से निरूपण करनेवाले विशेषरूप से विषय को खोलनेवाले होते हैं (ते-इत्-गम्भीरवेपसः) वे ही गम्भीर कर्म वाले-कर्मप्रवृत्तिवाले-असाधारण क्रियावाले होते हैं। (ते अङ्गिरसः सूनवः) वे परमात्मा के पुत्रसदृश होते हैं (ते अग्ने परिजज्ञिरे) क्योंकि परमात्मा को ध्यान करके प्रकट हुए होते हैं ॥५॥ आधिदैविक दृष्टि से– (विरूपासः-ऋषयः) विविध रूपवाले प्रसरणशील मेघ में उत्पन्न हुए विद्युत् के तरङ्गरूप कपिलादि वर्णवाले (गम्भीरवेपसः) गम्भीर कर्मवाले मेघ को गिराने रूप कर्मवाले (ते अङ्गिरसः सूनवः) वे विद्युदग्नि से उत्पन्न होनेवाले (ते अग्नेः परिजज्ञिरे) सामान्यरूप से अग्नि से उत्पन्न होते हैं।
Connotation: - मन्त्रार्थों को जाननेवाले ऋषि मन्त्रों का यथार्थ प्रवचन किया करते हैं और वे यथार्थ कर्म का प्रतिपादन तथा आचरण करते हैं। वे ही परमात्मा के ध्यान से ऋषिरूप को धारण करते हैं, एवं मेघ में भिन्न-भिन्न रूपों में चमकनेवाले विद्युत्तरङ्गों का मेघ को गिराने का कर्म महत्त्वपूर्ण होता है ॥५॥