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स ईं॒ वृषा॒ न फेन॑मस्यदा॒जौ स्मदा परै॒दप॑ द॒भ्रचे॑ताः । सर॑त्प॒दा न दक्षि॑णा परा॒वृङ्न ता नु मे॑ पृश॒न्यो॑ जगृभ्रे ॥

English Transliteration

sa īṁ vṛṣā na phenam asyad ājau smad ā paraid apa dabhracetāḥ | sarat padā na dakṣiṇā parāvṛṅ na tā nu me pṛśanyo jagṛbhre ||

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Pad Path

सः । ई॒म् । वृषा॑ । न । फेन॑म् । अ॒स्य॒त् । आ॒जौ । स्मत् । आ । परा॑ । ऐ॒त् । अप॑ । द॒भ्रऽचे॑ताः । सर॑त् । प॒दा । न । दक्षि॑णा । प॒रा॒ऽवृक् । न । ताः । नु । मे॒ । पृ॒श॒न्यः॑ । ज॒गृ॒भ्रे॒ ॥ १०.६१.८

Rigveda » Mandal:10» Sukta:61» Mantra:8 | Ashtak:8» Adhyay:1» Varga:27» Mantra:3 | Mandal:10» Anuvak:5» Mantra:8


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सः-ईं वृषा-आजौ-फेनम्-अस्यत्) वह दुहिता का वीर्यसेचक-पति उस प्राप्त कन्या में प्राणों का तत्त्व वीर्य फेंकता है-छोड़ता है, वह अभीष्ट है, परन्तु (दभ्रचेताः-स्मत्) अल्पमनवाला सब धन के लोभ से तुच्छ भावनावाला हमसे (आ-अप परा-ऐत्) भलीभाँतिरूप से दूर हो जाये-दूर रहे (दक्षिणा न पदा सरत् परावृक्) दी जानेवाली कन्या को पैर से न ठुकराये-अनादर करके न छोड़े (मे ताः पृश्न्यः-न जगृभ्रे) मेरी उन अर्थात् मेरे साथ स्पर्श करनेवाली भूमि सम्पत्तियों को ग्रहण न करे ॥८॥
Connotation: - कन्या का पति पिता द्वारा दी हुई कन्या में सन्तान उत्पन्न करे, यह तो अभीष्ट है, परन्तु कन्या के पिता की भूमि आदि सारी सम्पत्ति लेने के लोभ में कन्या का ठुकराना-उसे त्याग देना निकृष्ट कार्य है। ऐसा नहीं करना चाहिए ॥८॥